आनन्द कुमारः-
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) आरक्षण में ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा लागू करने का आदेश दिया है। इस निर्णय को 6-1 के बहुमत से पारित किया गया। यह फैसला आरक्षण प्रणाली में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें अब SC/ST वर्गों में भी क्रीमी लेयर की पहचान की जाएगी।
फैसले का महत्व
सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में स्पष्ट किया कि SC/ST आरक्षण के लाभ असली जरूरतमंदों तक पहुंचाने के लिए ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा आवश्यक है। इस प्रकार की व्यवस्था अभी तक केवल अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के आरक्षण में लागू थी। इस फैसले के बाद राज्यों को यह अधिकार मिल जाएगा कि वे SC/ST आरक्षण के लाभार्थियों में से आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्तियों को बाहर कर सकें, जिससे आरक्षण का लाभ वास्तव में गरीब और जरूरतमंद लोगों को मिल सके।
ऐतिहासिक संदर्भ
यह फैसला 2004 के एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले को खारिज करता है। 2004 में, ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने यह कहा था कि SC/ST वर्ग को किसी भी प्रकार की सब-कैटेगरी में विभाजित नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये एक समरूप वर्ग हैं। हालांकि, इस नए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुसूचित जातियां एक एकीकृत या समरूप समूह नहीं हैं और इसमें भी आर्थिक असमानता है।
फैसले का प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का दूरगामी प्रभाव होगा। अब राज्यों को यह अधिकार मिलेगा कि वे SC/ST आरक्षण के तहत ‘क्रीमी लेयर’ की पहचान कर सकें। इससे आरक्षण का लाभ वास्तव में गरीब और जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने में सहायता मिलेगी। यह फैसला आरक्षण की मौजूदा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण सुधार के रूप में देखा जा रहा है।
मुख्य न्यायाधीश का दृष्टिकोण
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने इस फैसले के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अनुसूचित जातियां और जनजातियां एक एकीकृत समूह नहीं हैं। उनके अनुसार, यदि हम वास्तव में समानता को प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें इन वर्गों में आर्थिक रूप से संपन्न और जरूरतमंद व्यक्तियों की पहचान करनी होगी। यह फैसला सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
विवाद और विपक्ष
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बावजूद, इस पर विरोध और विवाद की संभावना है। कुछ राजनीतिक दल और संगठन इस फैसले को SC/ST आरक्षण के खिलाफ मान सकते हैं और इसे चुनौती दे सकते हैं। उनके अनुसार, यह फैसला अनुसूचित जातियों और जनजातियों के अधिकारों को कम कर सकता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का तर्क है कि यह फैसला असली समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
राजनैतिक प्रतिक्रियाएं
इस फैसले पर विभिन्न राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया भी महत्वपूर्ण है। कुछ दल इस फैसले का स्वागत कर सकते हैं, जबकि अन्य इसका विरोध कर सकते हैं। इस फैसले का राजनैतिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव हो सकता है, खासकर उन राज्यों में जहां SC/ST आरक्षण का मुद्दा अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
सामाजिक प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। यह फैसला आरक्षण प्रणाली में पारदर्शिता और न्याय को बढ़ावा देगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि आरक्षण का लाभ वास्तव में उन लोगों तक पहुंचे, जिन्हें इसकी सबसे अधिक जरूरत है। इसके अलावा, यह फैसला सामाजिक आर्थिक असमानताओं को भी कम करने में मदद कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद, अब यह देखना होगा कि राज्य सरकारें कैसे इस निर्णय को लागू करती हैं। राज्यों को अब यह जिम्मेदारी होगी कि वे SC/ST आरक्षण के तहत ‘क्रीमी लेयर’ की पहचान करें और आरक्षण का लाभ सही लोगों तक पहुंचाएं। इसके लिए एक प्रभावी और पारदर्शी प्रणाली की आवश्यकता होगी।
सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस फैसले से SC/ST आरक्षण में पारदर्शिता और न्याय की भावना को बढ़ावा मिलेगा। यह फैसला यह सुनिश्चित करेगा कि आरक्षण का लाभ वास्तव में उन जरूरतमंद लोगों तक पहुंचे, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। हालांकि, इस फैसले पर विवाद और विरोध की संभावना है, लेकिन इसके बावजूद यह फैसला सामाजिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।