ऋषभ चौरसियाः-
कला की दुनिया में ऐसे कलाकार कम ही होते हैं, जिनकी हर रचना अपने आप में एक कहानी कहती हो। काखोरी के 80 वर्षीय इश्तियाक अली भी ऐसे ही कलाकार हैं, जिनके हाथों में लकड़ी के टुकड़े जीवंत हो उठते हैं। 13 साल की उम्र से लकड़ी पर अद्भुत आकृतियां उकेरने वाले इश्तियाक ने अपने जीवन का हर दिन इस कला को समर्पित किया। लेकिन विडंबना यह रही कि उनकी कृतियां भले ही सराही गईं, उन्हें बनाने वाले हाथों का नाम गुमनाम ही रहा।
कला का सफर
इश्तियाक अली का जीवन संघर्ष और कला के समर्पण की मिसाल है। जब भारत आज़ाद हुआ तब इश्तियाक अपने चार भाई-बहनों के साथ चिड़ियाघर में पले-बढ़े। यहीं से उनका सफर शुरू हुआ जब उन्होंने लकड़ी पर आकृतियां उकेरने की कला सीखनी शुरू की। तब से लेकर आज तक, इस कला ने उनके जीवन का हर पहलू छू लिया। 13 साल की उम्र से ही लकड़ी के टुकड़ों को अपनी कल्पनाओं में ढालना उनका जीवन बन गया।
बिना मशीन, सिर्फ हाथों का जादू
इश्तियाक अली की कला की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह कभी किसी मशीन का उपयोग नहीं करते। उनके लिए कला का असली रूप हाथों के जादू से ही उभरता है। हर आकृति, हर मूर्ति उनके हाथों की मेहनत का नतीजा होती है। उनका मानना है कि मशीनों से बनने वाली कृतियों में वह जान नहीं होती, जो हाथ से बनाई गई कृतियों में होती है। इसी समर्पण और सिद्धांत ने उनकी कला को खास बनाया है।
गणपति की मूर्तियों का अनोखा काम
इश्तियाक अली साल में सिर्फ दो दिन ही गणपति की मूर्तियां बनाते हैं, और इन दो दिनों में उनकी कला का अद्वितीय रूप देखने को मिलता है। लकड़ी पर गणपति की मूर्तियों को उकेरते समय वे एक अलग ही दुनिया में खो जाते हैं। बिना किसी मशीन के सहारे, उनके हाथों से निकलने वाली यह कला क्षेत्र में खासी प्रसिद्ध है। लेकिन दुर्भाग्यवश, इश्तियाक को उनकी इस अनमोल कला के लिए कभी वह पहचान नहीं मिल पाई।