आनन्द कुमारः-
भारत ने चांद पर अपने कदम रख दिए हैं, लेकिन धरती पर जनता अब भी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रही है। आधुनिक भारत की उपलब्धियों के बीच शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अभी भी गहरी खामियां नज़र आ रही हैं, जो देश के विकास की दिशा में एक बड़ा सवाल खड़ा करती हैं।
हाल ही में बेगूसराय से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई, जहां प्राइमरी पाठशाला के कक्षा 1 से 5 तक और इंटर कालेज के 9वी व 10वी कक्षा के बच्चों को एक ही कमरे में पढ़ाया जा रहा है। इस कक्षा में ब्लैकबोर्ड को बीच में से एक लाइन खींचकर दो हिस्सों में बांट दिया गया, जिससे स्पष्ट हो जाता है कि हमारी सरकारी शिक्षा प्रणाली की हालत कितनी दयनीय हो चुकी है। गरीब, शोषित और वंचित परिवारों के बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलना तो दूर की बात है, उन्हें बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं।
स्वास्थ्य क्षेत्र में भी स्थिति कुछ बेहतर नहीं है। उत्तर प्रदेश के सीतापुर में हाल ही में एक दिल दहलाने वाली घटना घटी। इमरजेंसी वार्ड में बेड की कमी के कारण एक ही बेड पर दो मरीजों को लिटा दिया गया, जिससे विवाद बढ़ गया। एक मरीज और वार्ड बॉय के बीच की छोटी-सी बहस ने इतना विकराल रूप ले लिया कि अस्पताल के अंदर ही मारपीट शुरू हो गई। इस घटना ने न केवल अस्पताल की व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को भी उजागर किया है।
यह स्थिति तब और भी चिंताजनक हो जाती है जब हम देखते हैं कि देश में यूरिया खाद जैसी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए भी किसानों को लंबा इंतजार करना पड़ता है। सरकारी योजनाएं और वादे केवल कागजों तक सीमित रह जाते हैं, और ज़मीन पर इनका अमल देखने को नहीं मिलता।
इस हालात में सवाल यह उठता है कि चांद पर पहुँचने वाला भारत अपनी जनता को बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं क्यों नहीं दे पा रहा है? क्या यह विकास केवल कुछ लोगों तक सीमित है? जब तक देश का हर नागरिक समान रूप से इन सेवाओं का लाभ नहीं उठा सकता, तब तक हमारे विकास का यह सफर अधूरा ही रहेगा।
सरकार को चाहिए कि वह इन मुद्दों को गंभीरता से ले और तुरंत ठोस कदम उठाए, ताकि भारत के हर नागरिक को समान रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिल सके। क्योंकि अगर इन बुनियादी जरूरतों को नज़रअंदाज़ किया गया, तो यह हमारे देश की विकास यात्रा में एक बड़ा धब्बा साबित हो सकता है।