आनन्द कुमारः-
हिंदू धर्म में पितृपक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, अत्यधिक महत्वपूर्ण और धार्मिक अनुष्ठानों से भरा हुआ समय होता है। इस वर्ष पितृपक्ष 17 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक चलेगा। इस 15 दिवसीय अवधि में, हमारे पूर्वज, जिन्हें पितृ कहा जाता है, पितृलोक से धरती पर आते हैं, और उनकी आत्मा की शांति के लिए श्रद्धा, तर्पण, और पिंडदान जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं।
पितृपक्ष के दौरान, यह माना जाता है कि पितरों की आत्मा धरती पर आकर उनके लिए किए गए श्रद्धा कर्मों को स्वीकार करती है और परिवार को आशीर्वाद देती है। पितरों की पूजा और तर्पण को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसके माध्यम से परिवार को सुख, शांति, समृद्धि, और उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।
धर्मशास्त्रों के अनुसार, पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृपक्ष का समय सबसे उत्तम माना जाता है। अश्विन माह के कृष्ण पक्ष में आने वाला यह समय श्राद्ध कर्म के लिए आदर्श होता है। पितृपक्ष के दौरान अपराह्न काल में किए गए श्राद्ध कर्म और तर्पण अनुष्ठान अत्यधिक फलदायी माने जाते हैं।
विशेषकर, यह ध्यान दिया जाता है कि परिवार में तीन पीढ़ियों तक ही श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। उसके बाद यह प्रथा समाप्त हो जाती है। इस समय के दौरान, पितृ धरती पर आते हैं और उनके लिए किए गए श्रद्धा, तर्पण, और पिंडदान को स्वीकार कर, परिवार को मोक्ष का आशीर्वाद देकर वापस पितृलोक लौट जाते हैं।
इस बार पितृपक्ष का आरंभ 17 सितंबर से होगा और यह 2 अक्टूबर तक चलेगा। इन पंद्रह दिनों में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और परिवार की समृद्धि के लिए श्राद्ध और तर्पण करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह समय अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का सुनहरा अवसर है, जिससे परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
पितृपक्ष कि तिथिया
- 17 सितंबर, मंगलवार: पूर्णिमा श्राद्ध
- 18 सितंबर, बुधवार: प्रतिपदा श्राद्ध
- 19 सितंबर, गुरुवार: द्वितीया श्राद्ध
- 20 सितंबर, शुक्रवार: तृतीया श्राद्ध
- 21 सितंबर, शनिवार: चतुर्थी श्राद्ध, महाभरणी
- 22 सितंबर, रविवार: पंचमी श्राद्ध
- 23 सितंबर, सोमवार: षष्ठी श्राद्ध, सप्तमी श्राद्ध
- 24 सितंबर, मंगलवार: अष्टमी श्राद्ध
- 25 सितंबर, बुधवार: नवमी श्राद्ध, मातृ नवमी
- 26 सितंबर, गुरुवार: दशमी श्राद्ध
- 27 सितंबर, शुक्रवार: एकादशी श्राद्ध
- 29 सितंबर, रविवार: द्वादशी श्राद्ध, मघा श्राद्ध
- 30 सितंबर, सोमवार: त्रयोदशी श्राद्ध
- 1 अक्तूबर, मंगलवार: चतुर्दशी श्राद्ध
- 2 अक्तूबर, बुधवार: अमावस्या श्राद्ध, सर्व पितृ अमावस्या
पिडंदान के लिए आवश्यक सासामाग्री
साल में पितरों को पिंडदान करने का मौका सिर्फ एक बार ही मिलता है इस दिन हम सब तैयारी की पूरी कोशिश करते हैं परंतु कुछ ना कुछ छुट्टी जाता है आपको बाजार में सामान लेते वक्त इन बातों का ख्याल रखना होगा।
रोड़ी,छोटी सुपारी, रक्षा सूत्र,चावल, जनेऊ,कपूर, हल्दी, देसी घी,माचिस, शहर, काला तिल, गुड़, तुलसी पत्ता,पान का पत्ता, कूश, जौ का आटा, हवन सामग्री, मिट्टी की दिया, रूई बाती, अगरबत्ती, दही, गंगाजल, फल और फूल दूध
सफेद रंग शांति का प्रतीक माना जाता है इसलिए अगर सफेद रंग का फूल अर्पित करेंगे तो ज्यादा शुभ होगा
पिंडदान करने का विधि विधान
अपने पितरों का पिंडदान करने के लिए सबसे पहले आपको एक अच्छी जगह जहां साफ सुथरा हो या तो आपका घर हो सकता है या आप गंगा किनारे या कोई पवित्र स्थान पर कर सकते हैं सबसे पहले आपको नहाना है नहाने के बाद अपने हाथ में पैथी (कूशा की पवित्री) पहनना है उसके बाद आटे को लेकर एक सुंदर चौका बनाना है याद रहे की अपने पास एक लोटा में साफ पानी अवस्य रखे फिर उसके बाद शुद्ध मिट्टी लेकर एक बेदी बनानी है बेदी को अच्छे से लिपाई करनी है उसके बाद उसके बाद दक्षिण की तरफ मुंह करके अपने पांव को मोड़कर घुटने के बल बैठ जाना है अगर आपको किसी प्रकार की बैठने में समस्या हो तो आप पालथी मार के भी बैठ सकते हैं सारी सामग्री को अपने पास में रखकर एक-एक कर बेदी के ऊपर चढ़ाना है और अपने मन में अपने पुरखों को याद करना है पूरी सामग्री चढ़ाने के बाद आपको एक-एक कर सारी सामग्री को बेदी से उठाना है और एक जगह इकट्ठा करके बेदी को फिर से लिपाई करना है और उसके ऊपर चौरानबे लिखना है यह अंक शुद्ध हिंदी के अंक में होना चाहिए फिर इसके बाद बेदी के नीचे अपने दोनों हाथों को उल्टा करके डालना है और बेदी को उल्टा पलट देना है इसके बाद लोटा के पानी से हाथ धो ले और सारे सामग्री को एक पवित्र स्थान पर डाल दें और जो लोटे में पानी है उसको किसी पेड़ के जड़ में या फिर कोई पवित्र स्थान पर फेंक सकते हैं अगर आपके आसपास गंगा हो तो वहां पर डाल सकते है
NOTE: पितरों को पिंडदान देने के बाद नेनुए या केला के पत्ते पर तीन जगह पकवान लगा लें सबसे पहले कौवा को उसके बाद कुत्ता को और तीसरा गाय को खिलाना है उसके बाद आप भोजन ग्रहण कर सकते हैं याद रहे की घर में सबसे पहले भोजन वही व्यक्ति करेगा जो पिंडदान किया हो।