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Reading: Unique Story of Rakshabandhan: यूपी के इस शहर में क्यों दूसरे दिन बहनें बांधती हैं राखी? सदियों पुरानी इस परंपरा के पीछे छुपा है एक रहस्य
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Khabar Tak Media - Daily News Hindi l Breaking News > धार्मिक > Unique Story of Rakshabandhan: यूपी के इस शहर में क्यों दूसरे दिन बहनें बांधती हैं राखी? सदियों पुरानी इस परंपरा के पीछे छुपा है एक रहस्य
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Unique Story of Rakshabandhan: यूपी के इस शहर में क्यों दूसरे दिन बहनें बांधती हैं राखी? सदियों पुरानी इस परंपरा के पीछे छुपा है एक रहस्य

महोबा में रक्षाबंधन: वीरता और विजय की ऐतिहासिक परंपरा का प्रतीक

Desk
Last updated: August 17, 2024 8:52 am
Desk Published August 17, 2024
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Highlights
  • महोबा में रक्षाबंधन का पर्व श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के बजाय परमा के दिन मनाया जाता है।
  • रक्षाबंधन के दिन कीरत सागर तट पर आल्हा-ऊदल ने पृथ्वीराज चौहान की सेना को हराया था।
  • विजय के अगले दिन, महोबा की बहनें भाइयों की कलाइयों पर राखी बांधती हैं और कजलियों का विसर्जन करती हैं।

ऋषभ चौरसियाः-

जब देशभर में श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को रक्षाबंधन का उत्सव मनाया जाता है, तब उत्तर प्रदेश के महोबा में इस पर्व को एक दिन बाद मनाने की परंपरा है। यहां बहनें अपने भाइयों की कलाइयों पर राखी पूर्णिमा के दिन नहीं, बल्कि परमा के दिन बांधती हैं। इस परंपरा की शुरुआत एक ऐतिहासिक घटना से जुड़ी है, जो महोबा के वीर योद्धाओं आल्हा और ऊदल और पृथ्वीराज चौहान के बीच हुए युद्ध की याद दिलाती है।

महोबा की धरती पर हुआ था निर्णायक युद्ध

यह कहानी 1182 की है, जब बुंदेलखंड का महोबा जिला संकट में था।इतिहाकार बताते है, उरई के राजा माहिल ने महोबा के राजा परमाल को उनके दो सेनानायकों, आल्हा और ऊदल, को राज्य से बाहर करने के लिए उकसाया। माहिल ने पृथ्वीराज चौहान को महोबा पर आक्रमण करने का न्योता भेजा। पृथ्वीराज चौहान की सेना ने महोबा को चारों ओर से घेर लिया, और राजा परमाल के सामने अपनी शर्तें रख दीं। पृथ्वीराज ने पारस पथरी, नौलखा हार, कालिंजर और ग्वालियर के किले, खजुराहो की बैठक, और राजा परमाल की बेटी रानी चंद्रावल का विवाह अपने बेटे ताहर से कराने की मांग की।

राजा परमाल की चुनौती और रानी मल्हना का साहस

जब राजा परमाल को पृथ्वीराज की शर्तों का सामना करना पड़ा, तो महल में तनाव का माहौल बन गया। रानी मल्हना और अन्य दरबारियों ने इसका विरोध किया और आल्हा और ऊदल को वापस बुलाने का निर्णय लिया। रानी मल्हना ने कवि जगनिक को आल्हा और ऊदल को मनाकर महोबा लाने का काम सौंपा। जब मां देवल ने आल्हा और ऊदल को धिक्कारा, तो उन्होंने साधु का वेश धारण कर महोबा लौटने का निर्णय लिया।

कीरत सागर तट पर रक्षाबंधन के दिन हुआ भुजरियों का युद्ध

रक्षाबंधन के दिन, आल्हा और ऊदल अपने साथियों के साथ जोगियों के वेश में कीरत सागर तट पर पहुंचे। यहां पृथ्वीराज चौहान की सेना के साथ भयानक युद्ध हुआ, जिसे इतिहास में ‘भुजरियों का युद्ध’ के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की सेना को हार का सामना करना पड़ा और वह भाग खड़ी हुई।

विजय के बाद कजली विसर्जन और राखी का अनोखा त्योहार

युद्ध की जीत के अगले दिन, महोबा के लोग कीरत सागर तट पर जमा हुए। यहां बहनों ने अपने भाइयों को कजली (अंकुरित गेहूं) दीं और उनसे अपनी रक्षा का वचन लिया। कजलियों का विसर्जन करने के बाद बहनों ने भाइयों की कलाइयों पर राखी बांधी। तभी से महोबा में रक्षाबंधन का पर्व परमा के दिन मनाने की परंपरा शुरू हुई, जिसे आज भी विजयोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

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