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Reading: वाराणसी के नागकूप का पाताल रहस्य: एक दिन के लिए खुला महादेव के दर्शन का अनोखा द्वार
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Khabar Tak Media - Daily News Hindi l Breaking News > U.P News > वाराणसी के नागकूप का पाताल रहस्य: एक दिन के लिए खुला महादेव के दर्शन का अनोखा द्वार
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वाराणसी के नागकूप का पाताल रहस्य: एक दिन के लिए खुला महादेव के दर्शन का अनोखा द्वार

पाताल लोक का प्रवेश द्वार: जहां नागेश्वर महादेव का दिव्य प्रकट होता है।

Desk
Last updated: August 14, 2024 5:56 am
Desk Published August 14, 2024
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Highlights
  • यह कूप पाताल लोक का प्रवेश द्वार माना जाता है, जिसकी स्थापना स्वयं महर्षि पतंजलि ने की थी।
  • हर साल नागपंचमी के चौथे दिन इस कूप की सफाई के बाद 40 फीट नीचे स्थित नागेश्वर महादेव के शिवलिंग के दर्शन होते हैं।
  • नागकूप से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, यह स्थान नागराज कार्कोटक के पाताल लोक जाने का मार्ग है, जिसे शिव ने स्थापित किया।

ऋषभ चौरसियाः-

वाराणसी,जो अपने प्राचीन मंदिरों और धार्मिक महत्व के लिए विश्व प्रसिद्ध है, यहां के जैतपुरा स्थित नागकूप का एक अलग ही आध्यात्मिक महत्व है। हर साल नागपंचमी के चौथे दिन, इस विशेष कूप की सफाई के बाद भक्तों को गहराई में स्थित नागेश्वर महादेव के शिवलिंग के दर्शन होते हैं। इस वर्ष भी हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा।

कहते हैं कि इस पवित्र कूप की स्थापना स्वयं महर्षि पतंजलि ने की थी, और यह कूप पाताल लोक का प्रवेश द्वार माना जाता है। जैसे ही सफाई के बाद 40 फीट नीचे स्थित शिवलिंग प्रकट हुआ, श्रद्धालुओं में उत्साह की लहर दौड़ गई। इस विशेष अवसर पर राज्य के आयुष मंत्री डॉ. दयाशंकर मिश्र दयालु ने भी नीचे उतरकर महादेव के दर्शन किए। जबकि,जैसे ही शिवलिंग का अनावरण हुआ, पूरा क्षेत्र “हर-हर महादेव” के नारों से गूंज उठा।

मंदिर के पुजारी आचार्य कुंदन पांडेय ने बताया कि महर्षि पतंजलि ने इस पावन स्थल पर अपने तप से नागेश्वर महादेव की स्थापना की थी। हर साल, नागपंचमी के चौथे दिन इस कूप की सफाई की जाती है, जिसमें पंप की सहायता से कुंड का पानी बाहर निकाल दिया जाता है। इसके बाद ही 80 फीट नीचे स्थित शिवलिंग के दर्शन संभव हो पाते हैं।

श्रद्धालुओं ने शिवलिंग का श्रृंगार कर दूध और जल से अभिषेक किया, और सीमित समय के लिए भक्तों को दर्शन का अवसर मिला।

आचार्य चंदन शास्त्री ने बताया कि यह नागकूप पाताल लोक जाने का मार्ग माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, राजा परीक्षित को सर्पदंश से बचाने के प्रयास में उनके पुत्र जन्मेजय ने जब नागयज्ञ किया, तो नागराज कार्कोटक ने भगवान इंद्र की शरण ली। शिव की तपस्या के बाद, शिव ने उन्हें अपने में समाहित कर पाताल लोक भेज दिया, और यह वही स्थान है, जिसे आज नागकूप के नाम से जाना जाता है।

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