ऋषभ चौरसियाः-
लखनऊ, लखनऊ जिसे नवाबों का शहर कहा जाता है, अपनी शाही विरासत के साथ-साथ लाजवाब जायकों के लिए भी जाना जाता है। यहां के कबाब, बिरयानी और निहारी के शौकीन सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में हैं। खासकर इदरीस बिरयानी, मुबीन की निहारी और टुंडे कबाबी के व्यंजनों ने लखनऊ की पहचान को और भी गौरवमयी बना दिया है। लेकिन अब, लखनऊ नगर निगम के एक फैसले से यह अनमोल स्वाद और विरासत खतरे में पड़ सकती है। नगर निगम ने शहर के सभी होटलों, ढाबों और फूड स्टॉलों को कोयले की भट्ठियों की जगह गैस का उपयोग करने का आदेश दिया है।
कोयले की भट्ठियों पर लगेगा ताला: व्यंजनों के स्वाद पर संकट
लखनऊ की इदरीस बिरयानी, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त है, अपने खास स्वाद के लिए जानी जाती है। इसके मालिक अबू बक्र का कहना है कि कोयले की भट्ठियों पर पकने से बिरयानी का स्वाद अलग ही स्तर पर पहुंच जाता है। “कोयले का धीमा और बराबर तापमान बिरयानी के हर दाने में स्वाद भर देता है, जिसे गैस पर पकाना संभव नहीं है,” अबू बक्र ने कहा। उन्होंने इस आदेश के बाद चिंता व्यक्त की कि अगर कोयले का उपयोग बंद करना पड़ा, तो बिरयानी का असली स्वाद शायद खो जाए।
टुंडे कबाबी का जायका भी होगा प्रभावित
करीब डेढ़ सौ साल पुरानी टुंडे कबाबी की विरासत भी इस नए आदेश से प्रभावित हो सकती है। होटल के मालिक अबू बकर ने बताया कि उनके यहाँ बनने वाले कबाब कोयले की आंच पर पीतल के बर्तन में पकाए जाते हैं। उन्होंने कहा, “हमारे कबाब का स्वाद ही कोयले की आग में निहित है। अगर हम गैस का इस्तेमाल करेंगे तो 90% से अधिक ग्राहक कोयले पर बने कबाब की मांग करेंगे।”
मुबीन होटल की निहारी भी बदलाव की कगार पर
मुबीन होटल जो अपनी निहारी और कुलचे के लिए मशहूर है,होटल मालिक याहया रिजवान ने भी इस आदेश के बाद अपनी चिंता जताई। उनका कहना है कि कई व्यंजन कोयले की भट्ठियों पर ही सही स्वाद पाते हैं। “गैस पर उन व्यंजनों को बनाना न केवल मुश्किल होगा, बल्कि उनका स्वाद भी वैसा नहीं रहेगा जैसा हमारे ग्राहक पसंद करते हैं,” उन्होंने कहा।
प्रदूषण की रोकथाम के लिए उठाया गया कदम
लखनऊ नगर निगम का यह आदेश वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए जारी किया गया है। शहर में करीब 3000 से अधिक कोयले की भट्ठियां हैं, जो वायु में पीएम 10 और पीएम 2.5 जैसे हानिकारक कणों की मात्रा बढ़ा रही हैं। एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) के एक अध्ययन में यह पाया गया कि अगर पारंपरिक कोयला भट्ठियों की जगह गैस या इलेक्ट्रिक ओवन का उपयोग किया जाए, तो इन प्रदूषकों के उत्सर्जन में 95% तक की कमी आ सकती है। नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह के अनुसार, इस कदम से लखनऊ की वायु गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार होगा।
क्या होगा लखनऊ के जायकों का भविष्य?
लखनऊ के होटलों और रेस्तरां के मालिकों का कहना है कि वे नगर निगम के आदेश का पालन करेंगे, लेकिन इससे उनके पकवानों के स्वाद पर क्या असर पड़ेगा, यह समय ही बताएगा। वहीं, वे सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि पारंपरिक पकवानों की गुणवत्ता और पहचान को बनाए रखने के लिए कोयले के उपयोग पर कुछ रियायत दी जाए।