आनन्द कुमारः-
सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में चल रहे बुलडोजर एक्शन को लेकर बड़ा कदम उठाया है। कोर्ट ने सोमवार, 2 सितंबर 2024 को इस मुद्दे पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि किसी भी व्यक्ति के घर को केवल इसलिए नहीं तोड़ा जा सकता क्योंकि वह किसी अपराध का आरोपी है। कोर्ट ने यह भी जोर दिया कि अगर व्यक्ति दोषी साबित हो भी जाता है, तब भी उसका घर ढहाया जाना न्यायोचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकार की कार्रवाई के लिए देशव्यापी गाइडलाइन बनाने की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं में कानून और न्याय का पालन सुनिश्चित हो सके।
सुनवाई में क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने पुलिस और प्रशासन द्वारा बुलडोजर एक्शन लेने के मुद्दे पर व्यापक चर्चा की। कोर्ट ने कहा कि यह मामला सिर्फ एक राज्य का नहीं है, बल्कि इसे देशव्यापी स्तर पर सुलझाने की आवश्यकता है। कोर्ट ने गाइडलाइन तैयार करने की बात कही जो भविष्य में इस प्रकार की कार्रवाईयों के लिए मानक निर्धारित करेगी।
बेंच ने कहा, “यह बिल्कुल अस्वीकार्य है कि किसी व्यक्ति का घर केवल इसलिए गिरा दिया जाए क्योंकि वह किसी अपराध का आरोपी है। घर तो तब भी नहीं गिराया जा सकता जब व्यक्ति दोषी साबित हो जाता है।” कोर्ट ने इस प्रकार की कार्रवाई पर सख्त आपत्ति जताते हुए कहा कि यह नागरिक अधिकारों का उल्लंघन है और इसे रोकना अनिवार्य है।
राज्यों से मांगे गए सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों से इस मुद्दे पर अपने-अपने सुझाव प्रस्तुत करने के लिए कहा है। कोर्ट ने कहा कि इन सुझावों को नई गाइडलाइन में शामिल किया जाएगा, जो अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई के लिए मानक प्रक्रियाओं को तय करेगी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह अवैध इमारतों को किसी भी प्रकार से बचाने की कोशिश नहीं करेगी, लेकिन किसी भी कार्रवाई को कानून के दायरे में रहकर ही किया जाना चाहिए।
उत्तर प्रदेश का पक्ष
सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि राज्य में चल रहे बुलडोजर एक्शन केवल उन इमारतों पर ही किया गया है जो अवैध निर्माण की श्रेणी में आती हैं। मेहता ने बताया कि ये कार्रवाई नगर निगम के कानूनों के तहत की गई है और जिनके खिलाफ कार्रवाई की गई है, उन्हें पहले नोटिस भेजे गए थे। जब नोटिस का कोई उत्तर नहीं मिला, तब जाकर इमारतों को गिराया गया।
तुषार मेहता ने कोर्ट को विश्वास दिलाया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने कानून के सभी नियमों का पालन किया है और किसी भी व्यक्ति के घर को केवल इसलिए नहीं तोड़ा गया क्योंकि वह किसी अपराध में आरोपी था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के रुख की सराहना की, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि इस मामले में आगे कोई गाइडलाइन बनने तक बुलडोजर एक्शन पर नियंत्रण रखा जाना चाहिए।
याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई विभिन्न राज्यों से दायर याचिकाओं के संबंध में हो रही है। मध्य प्रदेश और राजस्थान से आई याचिकाओं में कहा गया है कि उनके घरों को केवल इसलिए गिरा दिया गया क्योंकि उनमें रहने वाले व्यक्ति किसी अपराध के आरोपी थे। राजस्थान की एक याचिका में खासकर यह आरोप लगाया गया कि घर को इसलिए तोड़ा गया क्योंकि उसमें रहने वाला किरायेदार किसी अपराध में संलिप्त था।
इसके अलावा दिल्ली में भी एक याचिका दायर की गई है, जिसमें घर गिराने को लेकर आपत्ति जताई गई है। हरियाणा के नूंह जिले से भी इसी प्रकार की याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट के सामने आई हैं। इन सभी याचिकाओं में यही सवाल उठाया गया है कि क्या किसी आरोपी के घर को केवल इस आधार पर गिराना न्यायसंगत है कि वह किसी अपराध में आरोपी है?
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए गाइडलाइन जारी करने की बात कही है। कोर्ट ने कहा कि जब तक नई गाइडलाइन नहीं बनती, तब तक इस प्रकार की कार्रवाई पर नियंत्रण रखा जाए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी कार्रवाई करने से पहले सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जाना अनिवार्य है।
इस निर्णय से यह सुनिश्चित होगा कि किसी भी राज्य सरकार या प्रशासन को कानून से ऊपर नहीं माना जाएगा और नागरिकों के अधिकारों का संरक्षण किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न्यायपालिका की स्वतंत्रता और उसके संकल्प को दर्शाता है कि वह नागरिक अधिकारों की रक्षा के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है।