ऋषभ चौरसियाः-
उत्तराखंड के चमोली जिले की उर्गम घाटी में बसा वंशी नारायण मंदिर, अपने रहस्यमयी और अनोखे स्वरूप के लिए देश-विदेश में चर्चित है। हिमालय की गोद में स्थित यह मंदिर अपनी एक खास विशेषता के चलते भक्तों और श्रद्धालुओं के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है—यहां के कपाट पूरे साल में केवल एक दिन, रक्षाबंधन के दिन ही खोले जाते हैं। इसी अनूठे कारण से यह स्थान धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस खास दिन, जब मंदिर के द्वार खुलते हैं, तो यहां विशेष पूजा-अर्चना और आयोजन किए जाते हैं। भक्तजन, जो रक्षाबंधन के अवसर पर इस पवित्र स्थल तक पहुंचते हैं, मानते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन की गई पूजा और दर्शन से भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि, और सफलता का आशीर्वाद मिलता है।
वंशी नारायण मंदिर न केवल भगवान विष्णु बल्कि भगवान शिव और श्रीकृष्ण की उपासना का केंद्र भी है, जहां इन देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं। इसकी प्राचीनता और धार्मिक महत्ता के साथ, मंदिर का अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य भी आगंतुकों को मोहित करता है। यहाँ तक पहुँचने के लिए घने जंगलों और पर्वतीय रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है, जो इस धार्मिक यात्रा को और भी रोमांचक बना देता है।
रक्षाबंधन के दिन, यह मंदिर श्रद्धालुओं से भर जाता है, और दिनभर विशेष पूजा-पाठ के बाद शाम को सूरज ढलने के साथ ही मंदिर के कपाट एक बार फिर से अगले साल तक के लिए बंद कर दिए जाते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर में भगवान विष्णु का वामन अवतार प्रकट हुआ था और देव ऋषि नारद ने यहां उनकी पूजा की थी। कहते हैं कि नारद मुनि साल के 364 दिन इस मंदिर में पूजा करते हैं, और रक्षाबंधन के दिन यहां से हट जाते हैं ताकि भक्तजन भी भगवान नारायण की पूजा कर सकें। यही वजह है कि इस दिन यहां की पूजा और दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है।
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