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Reading: महादेव का अनोखा मंदिर: रात में स्थांतरित होता शिवलिंग, सुबह लौट आता अपने मूल स्थान पर; रामायण काल से जुड़ी है दिलचस्प कहानी
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Khabar Tak Media - Daily News Hindi l Breaking News > धार्मिक > महादेव का अनोखा मंदिर: रात में स्थांतरित होता शिवलिंग, सुबह लौट आता अपने मूल स्थान पर; रामायण काल से जुड़ी है दिलचस्प कहानी
धार्मिकपूजा पाठलखनऊ शहर

महादेव का अनोखा मंदिर: रात में स्थांतरित होता शिवलिंग, सुबह लौट आता अपने मूल स्थान पर; रामायण काल से जुड़ी है दिलचस्प कहानी

40 दिनों के जलाभिषेक से होती हैं मनोकामनाएं पूर्ण, भक्तों की असीम आस्था का केंद्र

Desk
Last updated: August 7, 2024 6:38 am
Desk Published August 7, 2024
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Highlights
  • कोनेश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग मंदिर के कोने में स्थापित है, जो इसे विशिष्ट और आकर्षक बनाता है।
  • मंदिर का इतिहास रामायण काल से जुड़ा हुआ है, जहां लक्ष्मण जी ने वनवास के दौरान कौण्डिन्य ऋषि द्वारा स्थापित शिवलिंग का पूजन किया था।

ऋषभ चौरसियाः-

सावन का महीना शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। इस पवित्र महीने में मनुष्य से लेकर देव लोक तक सभी भगवान शिव की आराधना में मग्न रहते हैं। विशेष रूप से इस समय शिवालयों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिलती है। लखनऊ शहर में स्थित एक ऐसा महादेव का मंदिर है, जिसका इतिहास रामायण काल से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर की एक अनोखी विशेषता यह है कि यहाँ शिवलिंग मंदिर के कोने में स्थापित है, जो इसे अद्वितीय और आकर्षक बनाता है। इस मंदिर की पौराणिक कथा और विशेषता इसे शिव भक्तों के बीच एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बनाती है।

कोनेश्वर महादेव मंदिर

कोनेश्वर महादेव मंदिर का पौराणिक इतिहास

लखनऊ के इस प्राचीन मंदिर का नाम कोनेश्वर महादेव मंदिर है। मंदिर के पुजारी शिव प्रसाद के अनुसार, यह मंदिर लक्ष्मण जी द्वारा आदि गंगा गोमती नदी के तट पर बसाया गया था। उस समय लखनऊ को लक्षणपुरी के नाम से जाना जाता था। गोमती नदी के तट पर कौण्डिन्य ऋषि का आश्रम था, जिसका उल्लेख कई प्राचीन धर्मग्रंथों में मिलता है। वनवास के दौरान शोकग्रस्त लक्ष्मण जी ने यहां रुककर कौण्डिन्य ऋषि द्वारा स्थापित शिवलिंग का अभिषेक और पूजन किया था। इस घटना का वर्णन वाल्मीकि ऋषि ने अपनी रामायण में भी किया है।

शिवलिंग का अनोखा स्थान

मंदिर की एक अनोखी विशेषता यह है कि यहाँ शिवलिंग मंदिर के कोने में विराजमान है, जो किसी अन्य मंदिर में नहीं देखा जाता। कहा जाता है कि कई बार भक्तों और पुजारियों ने शिवलिंग को बीच में स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन वह पुनः अपने मूल स्थान पर लौट आता था। इसी कारण इस शिवलिंग को कौण्डिन्येश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है, जो बाद में कोनेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

भक्तों की आस्था और मान्यता

प्रत्येक सोमवार को इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। दूर-दूर से लोग यहाँ शिवलिंग पर जल चढ़ाने आते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त 40 दिनों तक नियमपूर्वक शिवलिंग पर जलाभिषेक करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस मंदिर में भगवान शिव के अलावा अन्य देवी-देवताओं की भी पूजा-अर्चना की जाती है।

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