ऋषभ चौरसियाः-
जब पूरा देश श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की उमंग में डूबा होता है, कुशीनगर जिले की पुलिस के लिए यह दिन एक गहरी संजीदगी लेकर आता है। 30 साल पहले, जन्माष्टमी की रात, पुलिस और बदमाशों के बीच हुई मुठभेड़ में छह जांबाज पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। उस दर्दनाक घटना की यादें आज भी जिले की पुलिस के दिलों में ताजा हैं। इसी कारण, इस साल भी कुशीनगर में जन्माष्टमी का पर्व नहीं मनाया जा रहा है।
कुशीनगर जिले में 29 अगस्त 1994 की रात घटी एक घटना ने पुलिसकर्मियों के दिलों में ऐसी छाप छोड़ी है कि यहां जन्माष्टमी का पर्व आज भी उसी दिन की याद में ठहर सा जाता है। उस रात, जब पूरा जिला श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की तैयारियों में व्यस्त था, पचरुखिया गांव में कुख्यात डकैत बेचू मास्टर और रामप्यारे कुशवाहा उर्फ सिपाही के खिलाफ पुलिस एक बड़ा अभियान चला रही थी।
तत्कालीन एसपी बुद्धचंद के निर्देश पर, कोतवाल योगेंद्र प्रताप सिंह ने पुलिस बल इकट्ठा किया और बदमाशों की धरपकड़ के लिए दो टीमें बनाई गईं। सीओ पडरौना आरपी सिंह और थानाध्यक्ष तरयासुजान अनिल पांडेय के नेतृत्व में पुलिसकर्मी बांसी नदी के पास पहुंचे, जहां बदमाशों के छिपे होने की सूचना थी। जैसे ही पुलिसकर्मी नदी पार करने लगे, बदमाशों ने बम और गोलियों से हमला कर दिया।
इस अचानक हमले में थानाध्यक्ष अनिल पांडेय सहित छह पुलिसकर्मी शहीद हो गए। इस मुठभेड़ ने पूरे जिले को हिला कर रख दिया और कुशीनगर की पुलिस के लिए जन्माष्टमी का दिन एक गंभीर और भावुक स्मृति बन गया। तब से लेकर आज तक, कुशीनगर के किसी भी थाने पर जन्माष्टमी का पर्व नहीं मनाया जाता।
पुलिसकर्मी इस दिन को शहीद हुए साथियों की याद में बिताते हैं, और उनके सम्मान में किसी भी तरह का उत्सव या आयोजन नहीं करते। यह घटना कुशीनगर की पुलिस के लिए एक स्थायी याद बन चुकी है, जो हर साल जन्माष्टमी के दिन के साथ ताजा हो जाती है।