ऋषभ चौरसियाः-
उत्तर प्रदेश का एक शहर आज महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता की मिसाल बन गया है। यहां की महिलाओं ने घर की चारदीवारी से बाहर निकलकर ऐसी पहल की है, जो पूरे देश के लिए प्रेरणास्त्रोत बन रही है। यह कहानी है उन महिलाओं की, जिन्होंने गाय के गोबर से न सिर्फ अनोखे उत्पाद तैयार किए, बल्कि अपनी सालाना कमाई को 25 लाख रुपये तक पहुंचा दिया। यह बदलाव केवल उनकी जिंदगी में ही नहीं, बल्कि उनके पूरे समुदाय में देखने को मिल रहा है।
दरअसल,जालौन जिले के उरई के चमारी गांव की महिलाएं आज देशभर में चर्चा का विषय बन चुकी हैं। 2013 में शुरू हुई एक छोटी सी पहल ने इन्हें सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। विनीता पांडेय के नेतृत्व में इन महिलाओं ने स्वदेशी उत्पादों का निर्माण शुरू किया और गाय के गोबर और गोमूत्र से इको-फ्रेंडली उत्पाद बनाने का संकल्प लिया। शुरुआत में जहां ये महिलाएं सिर्फ राखियां और स्मृति चिन्ह बनाती थीं, आज वे 200 से अधिक अलग-अलग उत्पादों का निर्माण कर रही हैं। इनमें राम मंदिर के मॉडल से लेकर इको-फ्रेंडली मेमेंटोज तक शामिल हैं, जिनकी कीमत 5 रुपये से लेकर 2000 रुपये तक होती है।
गोशालाओं से 20 रुपये प्रति किलो की दर से गोबर और 5 रुपये प्रति लीटर की दर से गोमूत्र खरीदकर, इन महिलाओं ने न सिर्फ पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाई, बल्कि अपने गांव में रोजगार के नए अवसर भी पैदा किए। इसके साथ ही, मुख्यमंत्री सहभागिता योजना के तहत इन महिलाओं को निराश्रित गोवंश के संरक्षण के लिए सरकारी अनुदान भी मिल रहा है। इस अनुदान का उपयोग वे गाय पालन और उत्पाद निर्माण के लिए करती हैं, जिससे उनकी सालाना आय में और वृद्धि हो रही है।
इन उत्पादों की बिक्री ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों माध्यमों से होती है, जिससे उनकी बचत सालाना 20-25 लाख रुपये तक पहुंच गई है। इस आय का उपयोग न सिर्फ उनके परिवारों के बेहतर जीवन के लिए हो रहा है, बल्कि वे अन्य महिलाओं को भी इस कार्य में प्रशिक्षित कर रही हैं, जिससे पूरे गांव में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है।