काशी जिसे महादेव की नगरी के रूप में जाना जाता है, सदियों से हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था और विश्वास का केंद्र रही है। यहाँ स्थित काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है, जिसे भगवान शिव का सबसे पवित्र और पूजनीय स्थल में से एक माना जाता है।
महंत आवास की परंपरा एक झटके में खत्म
हर साल सावन के महीने में,महंत आवास से बाबा विश्वनाथ की पंचबदन चल रजत प्रतिमा को मंदिर परिसर में ले जाकर झूलनोत्सव का आयोजन किया जाता था। लेकिन इस बार, मंदिर प्रशासन ने इस परंपरा में एक बड़ा बदलाव किया है। अब महंत परिवार की प्रतिमा को मंदिर में प्रवेश नहीं मिलेगा, और इसके स्थान पर मंदिर प्रशासन स्वयं अपनी प्रतिमा का उपयोग इस आयोजन के लिए करेगा। ऐसे में,सदियों से चली आ रही 358 साल पुरानी परंपरा इस वर्ष समाप्त हो गई है।
झूलनोत्सव की पुरानी परंपरा
सावन का महीना बाबा विश्वनाथ के भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दौरान कई धार्मिक अनुष्ठान और विशेष श्रृंगार होते हैं। इन्हीं में से एक है झूलनोत्सव, जिसे रक्षाबंधन के दिन मनाया जाता है। इस उत्सव की शुरुआत सावन पूर्णिमा, यानी रक्षाबंधन के एक दिन पहले, टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास पर मंगला आरती के साथ होती है। इस अवसर पर विशेष अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं।
श्रावण पूर्णिमा के दिन दोपहर में बाबा विश्वनाथ की चल रजत प्रतिमा का विशेष श्रृंगार किया जाता है। दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक भक्तों को बाबा विश्वनाथ की इस चल प्रतिमा के दर्शन का अवसर मिलता है। महंत परिवार के अनुसार, यह परंपरा करीब 350 साल पुरानी है। श्रृंगार के बाद, बाबा विश्वनाथ चांदी की पालकी में सवार होकर काशी की सड़कों पर निकलते हैं। इस दौरान भक्तों की भारी भीड़ पालकी के साथ मंदिर तक जाती है। शृंगार भोग आरती के दौरान, डमरू और शहनाई की ध्वनि के बीच मंत्रोच्चार के साथ बाबा की प्रतिमा को गर्भगृह में स्थापित किया जाता है। हालाँकि, इस बार यह दृश्य श्रद्धालुओं को महंत आवास पर देखने को नहीं मिलेगा।
महंत परिवार में विवाद बनी जड़
हालांकि, इस बार झूलनोत्सव की यह पुरानी परंपरा नहीं निभाई जाएगी। मंदिर न्यास ने घोषणा की है कि इस वर्ष महंत परिवार की प्रतिमा को झूलनोत्सव में शामिल नहीं किया जाएगा। इसकी वजह महंत परिवार के भीतर चल रहा विवाद है। महंत परिवार के सदस्य डॉ. कुलपति तिवारी के निधन के बाद, उनके पुत्र वाचस्पति तिवारी और उनके चाचा लोकपति तिवारी के बीच प्रतिमा के अधिकार और परंपरा के निर्वहन को लेकर विवाद हो गया। इस पारिवारिक विवाद के कारण, मंदिर प्रशासन ने यह फैसला लिया कि अब झूलनोत्सव के लिए महंत परिवार की प्रतिमा का उपयोग नहीं किया जाएगा।
मंदिर प्रशासन का तर्क
मंदिर प्रशासन ने कहा कि पारिवारिक विवादों से दूर रहते हुए मंदिर की पवित्रता और व्यवस्था को बनाए रखना उनकी प्राथमिकता है। बाहरी प्रतिमा या किसी परिवार द्वारा की जा रही पूजा को मंदिर की परंपरा के साथ जोड़ना अनुचित होगा। इसलिए, इस वर्ष झूलनोत्सव में मंदिर प्रशासन अपनी प्रतिमा का ही उपयोग करेगा, जिसे विधिविधान से सजाया जाएगा और अनुष्ठान पूरे किए जाएंगे।
महंत परिवार की आपत्ति
महंत परिवार के कुछ सदस्यों ने इस निर्णय पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह परंपरा उनके पूर्वजों द्वारा 350 साल से अधिक समय से निभाई जा रही थी, और इसे इस प्रकार समाप्त करना अनुचित है। हालांकि, मंदिर प्रशासन अपने फैसले पर अडिग है और भविष्य में भी झूलनोत्सव समेत अन्य सभी चल प्रतिमा से जुड़े अनुष्ठानों में केवल मंदिर की प्रतिमाओं का ही प्रयोग करने की बात कह रहा है।
ऐसे में, काशी विश्वनाथ मंदिर में इस साल का झूलनोत्सव एक नए रूप में देखने को मिलेगा, जो वर्षों पुरानी परंपरा से अलग होगा।