आनन्द कुमारः-
21 अगस्त को बहुजन संगठनों द्वारा देश बंद कराने मुख्य कारण हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का वह निर्णय है, जिसमें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति दी गई है। इस निर्णय के खिलाफ देश भर में व्यापक विरोध और प्रदर्शन की तैयारी की जा रही है, जो सामाजिक और राजनीतिक संगठनों के बीच असंतोष का संकेत है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने एक हालिया फैसले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समूहों के भीतर उप-वर्गीकरण को मान्यता दी है। इसका मतलब यह है कि एससी और एसटी के तहत विभिन्न उप-श्रेणियों के बीच आरक्षण कोटा का विभाजन किया जा सकता है। आलोचकों का कहना है कि यह निर्णय सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों को कमजोर कर सकता है और पहले से ही हाशिए पर पड़े समुदायों में विभाजन पैदा कर सकता है।
बहुजन संगठनों का विरोध
इस निर्णय के खिलाफ कई बहुजन संगठन और सामाजिक-राजनीतिक नेतृत्व वाले समूहों ने विरोध प्रदर्शन और देशव्यापी बंद की घोषणा की है। भीम सेना के नेता सतपाल तंवर ने इस बंद की घोषणा की है, जो सैकड़ों कार्यकर्ताओं और विभिन्न संगठनों का समर्थन प्राप्त कर रहा है। उनका कहना है कि यह निर्णय सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा खतरा है और इससे हाशिए के समुदायों को और भी कमजोर किया जाएगा।
प्रदर्शन और प्रतिक्रिया
आयोजकों का उद्देश्य है कि प्रदर्शन के माध्यम से सामान्य गतिविधियों को बाधित किया जाए और राष्ट्रीय ध्यान इस मुद्दे पर आकर्षित किया जाए। इस प्रदर्शन को लेकर प्रमुख शहरों और कस्बों में सक्रियता देखी जा रही है। साथ ही, प्रभावित पक्ष सर्वोच्च न्यायालय में एक समीक्षा याचिका दायर करने की तैयारी कर रहे हैं, जिसमें इस निर्णय को पलटने या संशोधित करने की मांग की जाएगी।
प्रदर्शन की तैयारी
आयोजकों का उद्देश्य सामान्य गतिविधियों को बाधित करना और राष्ट्रीय ध्यान इस मुद्दे पर आकर्षित करना है। इसके लिए विभिन्न शहरों और कस्बों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन और जुलूस की योजना बनाई गई है। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि इस निर्णय को पलटा जाए और आरक्षण नीतियों की मूल भावना को बरकरार रखा जाए।
समीक्षा याचिका की तैयारी
इस निर्णय के खिलाफ प्रभावित पक्ष सर्वोच्च न्यायालय में एक समीक्षा याचिका दायर करने की तैयारी कर रहे हैं। याचिकाकर्ता यह मांग कर रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटा जाए या संशोधित किया जाए, क्योंकि उनका तर्क है कि यह भारतीय संविधान में निहित समानता और न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।