ऋषभ चौरसियाः-
बनारस, जिसे काशी भी कहा जाता है, अपनी अनगिनत मंदिरों और पौराणिक कथाओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां की हर गली, हर घाट पर आपको कोई न कोई मंदिर मिल जाएगा, लेकिन दशाश्वमेध घाट के पास स्थित एक मंदिर की कहानी कुछ अलग और बेहद दिल दहला देने वाली है। यहां की दीवारों में सदियों पुराना ऐसा राज दफन है, जिसे सुनकर आज भी रूह कांप जाती है। इस मंदिर की नींव में दफन है एक राजकुमारी की दर्दनाक दास्तान, जिसने अपनी इज्जत और धर्म की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी।
नींव में दफन राजकुमारी की कहानी
बनारस के पांडेय घाट पर स्थित तारा माता का मंदिर बाहर से देखने पर एक पुरानी हवेली जैसा लगता है, लेकिन इसके भीतर एक ऐसी सच्चाई छुपी है जो आपके दिल को झकझोर देगी। इस मंदिर का निर्माण 1752 से 1758 के बीच बंगाल के नाटोर राज्य की रानी भवानी ने करवाया था। लेकिन यह सिर्फ एक मंदिर नहीं है, बल्कि एक जिंदा समाधि है, जिसमें रानी भवानी की बेटी, राजकुमारी तारा सुंदरी को जिंदा दफन कर दिया गया था।
राजकुमारी तारा सुंदरी की कुर्बानी
कहानी कुछ इस तरह है कि राजकुमारी तारा सुंदरी, नाटोर की रानी भवानी की एकलौती बेटी थीं। उनकी सुंदरता और शालीनता की चर्चाएं दूर-दूर तक फैली थीं। तारा सुंदरी का विवाह बंगाल के खेजुरी गांव के रघुनाथ लाहिरी से हुआ था, लेकिन भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया और बहुत कम उम्र में ही वे विधवा हो गईं। जब मुगल शासक सिराजुद्दौला की नजर तारा सुंदरी पर पड़ी, तो उसने उनसे शादी करने का ऐलान कर दिया। अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए रानी भवानी तारा सुंदरी को लेकर गंगा के रास्ते बनारस आ गईं, लेकिन सिराजुद्दौला का पीछा नहीं छूटा।
जब रानी भवानी को सिराजुद्दौला के बनारस आने की खबर मिली, तो राजकुमारी तारा सुंदरी ने अपनी मां से कहा, “मुझे जिंदा दफना दिया जाए, लेकिन उस विधर्मी के हाथ न लगने दिया जाए।” रानी भवानी के पास कोई और उपाय नहीं था, इसलिए उन्होंने अपनी बेटी को जिंदा दफन कर दिया और उसकी समाधि पर तारा माता का मंदिर बनवाया।
मंदिर और रानी भवानी का योगदान
इस दर्दनाक घटना के बाद, रानी भवानी ने बनारस में धार्मिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कहा जाता है कि बनारस की पंचक्रोशी यात्रा के मार्ग में आने वाले धर्मशालाएं, कुएं और तालाब रानी भवानी ने ही बनवाए थे। इसके अलावा, काशी के कई घाट, मंदिर और तालाब या तो रानी अहिल्याबाई द्वारा बनवाए गए थे या फिर रानी भवानी के। उन्होंने तारा माता मंदिर की पूजा विधि को भी तारापीठ की तर्ज पर ही रखा, जिससे यह मंदिर तंत्र साधना का एक प्रमुख केंद्र बन गया।