ऋषभ चौरसियाः-
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कांवड़ यात्रा-नेमप्लेट विवाद मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के उस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है, जिसमें कांवड़ रूट पर स्थित दुकानों के मालिकों को अपनी पहचान उजागर करने के निर्देश दिए गए थे। अदालत ने स्पष्ट किया है कि दुकानदारों को केवल अपने भोजन की प्रकृति यानी शाकाहारी या मांसाहारी खाना बेचने की जानकारी देनी होगी, न कि अपनी व्यक्तिगत पहचान।
क्या है मामला?
उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानदारों को अपनी नेमप्लेट पर नाम लिखने के निर्देश दिए थे। इस आदेश की शुरुआत मुजफ्फरनगर से हुई थी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 19 जुलाई को पूरे प्रदेश में इसे लागू करने का निर्देश दिया था। आदेश के तहत हलाल प्रोडक्ट्स बेचने वालों पर भी कार्रवाई का प्रावधान था।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में उठे सवाल
एनजीओ एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। एनजीओ की ओर से पेश वकील सीयू सिंह ने कहा कि यूपी सरकार के इस फैसले का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है और इस तरह का आदेश पहले कभी नहीं जारी हुआ।
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे छद्म आदेश करार दिया और कहा कि कांवड़ यात्रा दशकों से हो रही है, जिसमें सभी धर्मों के लोग कांवड़ियों की मदद करते हैं। उनका मानना है कि इस तरह के आदेश का पालन नहीं करने वालों पर जुर्माना लगाना अनुचित है और यह दुकानदारों के लिए आर्थिक तंगी का कारण बनेगा।

अदालत का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के इस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी और कहा कि दुकानदारों को अपनी पहचान उजागर करने की जरूरत नहीं है। अदालत ने यूपी, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है और अन्य राज्यों को शामिल करने की संभावना भी जताई है। इस मामले में अगली सुनवाई 26 जुलाई को होगी।