ऋषभ चौरसियाः-
श्रावण मास की पावन बेला, भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का एक अहम पर्व है, जिसमें भक्तों की आस्था और श्रद्धा अपने चरम पर होती है। इस मास को भगवान शिव का प्रिय मास माना जाता है, जिसमें शिव और पार्वती की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। भक्त इस महीने में विधि-विधान से पूजा कर सुख-समृद्धि और कष्टों से मुक्ति की कामना करते हैं।इसी मास में नागपंचमी का विशेष महत्व है, जो इस साल 9 अगस्त 2024 को मनाई जा रही है। इस पर्व पर नाग देवता की पूजा और उन्हें दूध अर्पित करने की परंपरा है।
उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर इस अवसर पर विशेष आकर्षण का केंद्र बनता है। यह मंदिर अपनी अनोखी विशेषता के लिए जाना जाता है – साल में केवल एक ही दिन, नागपंचमी के दिन इसके कपाट खुलते हैं। लाखों भक्त इस दिन मंदिर में दर्शन के लिए उमड़ते हैं।
अनोखा इतिहास और अद्भुत मूर्ति
नागचंद्रेश्वर मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के तीसरे मंजिल पर स्थित है। यहां शिव, पार्वती और उनका पूरा परिवार दशमुखी सर्प के आसन पर विराजमान है। इस मंदिर की मूर्ति 11वीं शताब्दी की मानी जाती है और इसे नेपाल से लाया गया था। परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी में इस मंदिर का निर्माण कराया था, और 1732 में सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने इसका पुनर्निर्माण कराया।
मंदिर के साल में एक दिन खुलने की पौराणिक कथा
नागचंद्रेश्वर मंदिर के केवल नागपंचमी के दिन खुलने के पीछे एक रोचक पौराणिक कथा है। सर्पराज तक्षक ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। शिवजी ने तक्षक को अमरत्व का वरदान दिया और तभी से तक्षक उनके सानिध्य में रहने लगे। शिवजी को एकांत में ध्यान करना पसंद था, इसलिए तक्षक ने साल में केवल एक बार, नागपंचमी के दिन ही उनके दर्शन करने का निर्णय लिया। इसी कारण यह मंदिर केवल इसी दिन खुलता है।
कालसर्प दोष से मुक्ति का उपाय
ऐसा माना जाता है कि जिनकी कुंडली में सर्प दोष या कालसर्प दोष होता है, वे नागपंचमी के दिन नागचंद्रेश्वर मंदिर में दर्शन और विधिवत पूजा करके इन दोषों से मुक्ति पा सकते हैं। इस विशेष दिन पर यहां दर्शन करने मात्र से ही भक्तों की सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
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