ऋषभ चौरसियाः-
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, अपनी अनूठी तहजीब और सांस्कृतिक धरोहर के लिए विश्वभर में मशहूर है। यहां की हवा में नजाकत, नफासत, अदब और आदाब घुले हुए हैं, जो इसे अन्य शहरों से अलग बनाते हैं। लखनऊ की यह खासियत केवल उसके नवाबी दौर से नहीं, बल्कि उसकी गंगा-जमुनी तहजीब से भी है, जो धर्मों और संस्कृतियों की सीमाओं को पाटती है।
गंगा-जमुनी तहजीब का मतलब है एक ऐसी समृद्ध सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना, जिसमें विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग आपसी सम्मान और सहयोग के साथ रहते हैं। लखनऊ में यह तहजीब हर गली और मोहल्ले में झलकती है।
इतिहासकार नवाब मसूद अब्दुल्लाह बताते हैं कि नवाब वाजिद अली शाह ने इस तहजीब को आकार देने में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने ‘आदाब’ शब्द को लोकप्रिय बनाया, जो सभी धर्मों के लोगों के बीच सम्मान का प्रतीक बना। नवाब वाजिद अली शाह का मानना था कि हिंदू और मुस्लिम दोनों उनकी आंखें हैं और वे एक हैं। उन्होंने लोगों के पहनावे में भी एकरूपता लाने के लिए दोपल्ली टोपी और अंगरखा कपड़े प्रचलित किए, ताकि सभी एक समान दिखें और सामाजिक एकता का संदेश फैले।
अंग्रेजों के समय में, लखनऊ का यह सामाजिक ताना-बाना इतना मजबूत था कि अंग्रेजों के लिए इसे तोड़ना मुश्किल हो गया। उन्होंने नवाब वाजिद अली शाह को बदनाम करने की कई कोशिशें कीं, लेकिन उनकी चालें नाकाम रहीं।
लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब आज भी जीवंत है। यह शहर धर्मों और संस्कृतियों की सीमाओं को पार कर एकता, सहिष्णुता और भाईचारे की अनोखी मिसाल पेश करता है। यही कारण है कि लखनऊ को कहते हैं, “मुस्कुराइए, आप लखनऊ में हैं।”