आनन्द कुमारः-
भारत ने अपनी सामरिक और सुरक्षा क्षमता को और मजबूत करते हुए अमेरिका से 31 प्रीडेटर ड्रोन (MQ-9B) की डिलीवरी सफलतापूर्वक प्राप्त कर ली है। यह डील भारतीय सुरक्षा तंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसे अमेरिका और भारत के बीच हुए रक्षा सहयोग की दिशा में एक बड़ा मील का पत्थर माना जा रहा है। इस कदम से भारत की सुरक्षा की स्थिति और भी मजबूत हो जाएगी, खासकर ऐसे समय में जब दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है।
प्रीडेटर ड्रोन: अत्याधुनिक तकनीक से लैस
प्रीडेटर ड्रोन, जिसे अमेरिका की कंपनी जनरल एटॉमिक्स द्वारा निर्मित किया गया है, दुनिया के सबसे उन्नत और शक्तिशाली अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV) में से एक है। यह ड्रोन लंबी दूरी तक उड़ान भरने, दुश्मन के ठिकानों की निगरानी करने, और लक्ष्यों पर सटीक हमले करने में सक्षम है। इसके अलावा, यह ड्रोन इंटेलिजेंस, सर्विलांस, और रिकॉन्सेंस (ISR) क्षमताओं से लैस है, जो इसे निगरानी और हमले के मिशनों के लिए अनिवार्य बनाता है।
MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन, जिसे “सी गार्जियन” और “स्काई गार्जियन” के नाम से भी जाना जाता है, सटीकता, स्टील्थ, और अत्यधिक परिष्कृत हथियार प्रणालियों के साथ आता है। यह 40 घंटे तक लगातार उड़ान भर सकता है और 50,000 फीट की ऊंचाई तक पहुंचने में सक्षम है। इसके साथ ही इसमें लेज़र गाइडेड मिसाइलों और अन्य आधुनिक हथियार प्रणाली को स्थापित किया जा सकता है।
भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी का नया आयाम
भारत और अमेरिका के बीच यह समझौता रक्षा क्षेत्र में गहरी साझेदारी का प्रतीक है। भारत ने 31 प्रीडेटर ड्रोन को अपनी सेना, नौसेना, और वायुसेना की सामरिक क्षमता बढ़ाने के लिए खरीदा है। यह डील भारतीय सेना के सभी तीन अंगों को एक साथ अत्याधुनिक ड्रोन तकनीक से लैस करने का एक अहम प्रयास है। इस समझौते से यह स्पष्ट होता है कि दोनों देश रक्षा और सामरिक क्षेत्र में अपने संबंधों को और मजबूत करने के इच्छुक हैं।
इस डील के माध्यम से भारत अपनी समुद्री सीमाओं की निगरानी और अपने पड़ोसियों के साथ सीमा सुरक्षा को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए तैयार है। इसके साथ ही, यह ड्रोन देश के भीतर आतंकवाद, घुसपैठ, और उग्रवादी गतिविधियों की रोकथाम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
क्षेत्रीय सुरक्षा में अहम भूमिका
भारत को यह 31 प्रीडेटर ड्रोन ऐसे समय में मिल रहे हैं, जब चीन और पाकिस्तान के साथ उसकी सीमाएं तनावपूर्ण बनी हुई हैं। चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर और पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (LoC) पर अक्सर तनाव बना रहता है। इन क्षेत्रों में निगरानी और हमला करने की क्षमता रखने वाले प्रीडेटर ड्रोन भारत की सुरक्षा रणनीति को और मजबूत करेंगे।
खासकर भारत की समुद्री सुरक्षा के लिए यह ड्रोन महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि यह भारतीय नौसेना को हिंद महासागर क्षेत्र में गहराई से निगरानी करने की अनुमति देगा। चीन की बढ़ती नौसैनिक गतिविधियों के बीच यह ड्रोन भारत को सटीक और वास्तविक समय की जानकारी देने में सक्षम होंगे।
तकनीकी स्थानांतरण और स्वदेशीकरण की दिशा में कदम
भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग के तहत यह उम्मीद की जा रही है कि भारत को न केवल यह प्रीडेटर ड्रोन मिलेंगे, बल्कि इसके साथ-साथ तकनीकी स्थानांतरण और स्वदेशीकरण की दिशा में भी महत्वपूर्ण प्रगति होगी। अमेरिका की रक्षा निर्माता कंपनियों के साथ भारत की स्वदेशी रक्षा निर्माता कंपनियों का तालमेल बढ़ने की संभावना है, जिससे भविष्य में भारत में ही ऐसे अत्याधुनिक ड्रोन का निर्माण हो सकेगा।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच हाल ही में हुई द्विपक्षीय वार्ताओं में यह स्पष्ट हुआ था कि दोनों देश न केवल हथियारों की खरीद-बिक्री तक सीमित रहेंगे, बल्कि तकनीकी साझेदारी को भी मजबूत करेंगे। इससे भारत की “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” योजनाओं को बढ़ावा मिलेगा, और देश अपनी रक्षा उत्पादन क्षमता को स्वदेशी स्तर पर और अधिक सशक्त कर पाएगा।
ड्रोन तकनीक में भारत का उन्नयन
भारत पहले से ही स्वदेशी ड्रोन निर्माण के क्षेत्र में प्रगति कर रहा है, और यह प्रीडेटर ड्रोन की डिलीवरी उसे नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी। भारत ने हाल ही में स्वदेशी ड्रोन प्रोग्राम पर जोर दिया है, जिसमें उसने हल्के और मध्यम श्रेणी के ड्रोन विकसित किए हैं। लेकिन यह प्रीडेटर ड्रोन उच्च श्रेणी की तकनीक और उन्नत क्षमताओं के साथ भारत की रक्षा क्षमताओं को और मजबूत करेंगे।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों में संतुलन
अमेरिका के साथ इस डील के बावजूद भारत अपने सामरिक संबंधों में संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। रूस के साथ रक्षा संबंधों की मजबूती और फ्रांस से राफेल विमान की डील इस बात का संकेत हैं कि भारत किसी एक देश पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहता। प्रीडेटर ड्रोन की यह डील भारत-अमेरिका संबंधों में एक नया अध्याय जरूर खोलती है, लेकिन भारत अपने पुराने सहयोगियों के साथ भी रणनीतिक संतुलन बनाए रख रहा है।