आनन्द कुमारः-
नई दिल्ली: संसद में इन दिनों जाति जनगणना का मुद्दा जोरों पर है। आज के संसद मे हुई बहस के दौरान भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिली। इस मुद्दे पर दोनों नेताओं के बयानों ने सदन का माहौल गरमा दिया।
अनुराग ठाकुर ने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा, “जाति जनगणना की बात वे लोग करते हैं जिनकी खुद की जाति का पता नहीं है।” उनके इस बयान ने संसद में हलचल मचा दी और कांग्रेस नेताओं ने इसका जोरदार विरोध किया। अनुराग ठाकुर का यह बयान सीधे तौर पर राहुल गांधी की ओर इशारा कर रहा था, जो जाति जनगणना के प्रबल समर्थक हैं।
राहुल गांधी की प्रतिक्रिया:
राहुल गांधी ने इस बयान का करारा जवाब देते हुए कहा, “आप जितना अपमान करना चाहते हैं, कर सकते हैं, लेकिन एक बात मत भूलिए, हम जाति जनगणना को पास करके ही दिखाएंगे।” उन्होंने अपने बयान में साफ किया कि जाति जनगणना उनकी पार्टी की प्राथमिकता है और इसके लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
राहुल गांधी ने आगे कहा, “जो भी इस देश में दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के लिए लड़ता है, उसे गालियां सहनी पड़ती हैं। और आज मैं इन गालियों को खुशी से सहने के लिए तैयार हूं।” उनके इस बयान ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया और सदन में तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई दी।
अनुराग ठाकुर का पलटवार:
अनुराग ठाकुर ने राहुल गांधी के आरोपों का जवाब देते हुए कहा, “राहुल गांधी को हर बार भाषण देने से पहले पर्चीया मिलती है। उन्हें बोलने से पहले पर्चा और बोलने के बाद पर्चा मिलता है।” उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि राजनीति ऐसे नहीं चलती और वास्तविक मुद्दों पर बात होनी चाहिए।
अनुराग ठाकुर ने कहा, “जाति जनगणना की बात करना सिर्फ वोट बैंक की राजनीति है। यह देश के हित में नहीं है। हमें समाज के सभी वर्गों के उत्थान के लिए काम करना चाहिए, न कि जातिगत विभाजन को बढ़ावा देना।”
अखिलेश यादव की एंट्री:
इस गरम बहस के बीच समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। अखिलेश यादव ने आक्रोश में पूछा, ” आप ने जाति कैसे पूछ ली?आप जाति कैसे पूछेंगे? पूछ के दिखाओ जाति को?” उनका सवाल सीधे तौर पर जाति जनगणना के लागू होने के तरीके और उसकी पारदर्शिता पर था। अखिलेश यादव ने कहा कि जाति जनगणना का उद्देश्य सिर्फ आंकड़े जुटाना नहीं होना चाहिए, बल्कि इसके आधार पर समाज के पिछड़े और दलित वर्गों के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।
जगदंबिका पाल का हस्तक्षेप:
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान पीठासीन अधिकारी जगदंबिका पाल ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, “अब से सदन में कोई भी जाति नहीं पूछेगा।” उनका यह बयान संसद में शांति बनाए रखने के उद्देश्य से था। उन्होंने सभी सदस्यों से आग्रह किया कि वे इस मुद्दे पर शांतिपूर्ण और सटीक बहस करें और सदन की गरिमा बनाए रखें।
जाति जनगणना की आवश्यकता:
जाति जनगणना का मुद्दा भारतीय राजनीति में लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है। इसके समर्थकों का मानना है कि जाति जनगणना से समाज के सभी वर्गों की वास्तविक स्थिति का पता चल सकेगा और सरकारें उनके उत्थान के लिए प्रभावी नीतियां बना सकेंगी। हालांकि, इसके विरोधियों का कहना है कि यह समाज में जातिगत विभाजन को बढ़ावा देगा और सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करेगा।
राहुल गांधी के समर्थन में कांग्रेस पार्टी ने जोर देकर कहा कि जाति जनगणना से समाज के वंचित और पिछड़े वर्गों की सही संख्या का पता चलेगा और उनके लिए योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, “जाति जनगणना से हम यह जान सकेंगे कि समाज के किन वर्गों को सबसे ज्यादा मदद की जरूरत है और उनके लिए योजनाएं बनाकर उन्हें मुख्यधारा में लाया जा सकेगा।”
भाजपा की प्रतिक्रिया:
भाजपा ने जाति जनगणना के मुद्दे पर सतर्क रुख अपनाया है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि यह मुद्दा संवेदनशील है और इसे राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार समाज के सभी वर्गों के विकास के लिए प्रतिबद्ध है और इस मुद्दे पर सभी हितधारकों से सलाह-मशविरा किया जाएगा।
सांसदों की राय
इस मुद्दे पर संसद में बहस के दौरान विभिन्न दलों के सांसदों ने अपनी राय व्यक्त की। एनडीए के सहयोगी दलों ने भी भाजपा के साथ खड़े होकर जाति जनगणना के विरोध में अपने विचार रखे। वहीं, विपक्षी दलों ने इसे समाज के वंचित वर्गों के लिए आवश्यक बताया।
जाति जनगणना का मुद्दा भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। संसद में हुई इस बहस ने यह साबित कर दिया कि इस पर विभिन्न दलों की राय में काफी मतभेद हैं। अनुराग ठाकुर और राहुल गांधी के बीच हुई तीखी नोकझोंक ने इस मुद्दे को और अधिक गरमा दिया है।
जाति जनगणना के पक्ष और विपक्ष में मजबूत तर्क हैं और इसे हल करने के लिए एक व्यापक और संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। समाज के सभी वर्गों के उत्थान और उनके वास्तविक स्थिति का पता लगाने के लिए जाति जनगणना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, लेकिन इसके साथ ही इसके संभावित नकारात्मक प्रभावों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।
संसद में इस मुद्दे पर आगे की बहस और चर्चा से ही यह तय हो सकेगा कि जाति जनगणना को किस रूप में और किस दिशा में आगे बढ़ाया जाए। समाज के सभी वर्गों के उत्थान के लिए एक समावेशी और न्यायसंगत नीति बनाने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।