अयोध्या और बद्रीनाथ जैसे धार्मिक स्थलों पर हाल ही में हुए चुनावों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी से इस बार बेहद मुश्किल से महज 1.5 लाख वोटों के अंतर से जीत पाए। इन नतीजों ने एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा किया है.. क्या धार्मिक क्षेत्रों में अंधाधुंध विकास वास्तव में लाभकारी है?
अयोध्या और बद्रीनाथ, दोनों ही धार्मिक स्थलों पर बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाएं चलाई गई हैं। अयोध्या में सैकड़ों घर तोड़कर कोरिडोर बनाए गए हैं, जिससे कई परिवार बेघर हो गए हैं। बद्रीनाथ में भी विकास के नाम पर पुराने ढांचे को तोड़ा जा रहा है और नए व्यापारिक प्रतिष्ठान स्थापित किए जा रहे हैं।
मंदिर परिसरों का विस्तार और सौंदर्यीकरण एक हद तक ठीक है, लेकिन अब वहां व्यापारिक गतिविधियाँ प्रमुख हो गई हैं। अयोध्या में, कोरिडोर के निर्माण के चलते सैकड़ों परिवारों को अपने घरों से बेदखल होना पड़ा।
वाराणसी में विश्वनाथ कोरिडोर के निर्माण के लिए भी कई लोग अपने पुरखों के घरों से हाथ धो बैठे हैं। मंदिर परिसरों में अब फूड कोर्ट और इवेंट्स के लिए बुक किए जा सकने वाले ज्योतिर्लिंग नामक भवन बन गए हैं। पैसा और वीआईपी स्टेटस हो तो गर्भगृह से 100 मीटर की दूरी पर वीवीआईपी लॉज में ठहरने की व्यवस्था है।
यह बदलाव स्थानीय जनता के बीच असंतोष पैदा कर रहा है। परिसर में विभिन्न आरतियों और दुर्लभ दर्शन के नाम पर लोगों से पैसे वसूले जा रहे हैं।चुनावों के नतीजे साफ दिखाते हैं कि बाहरी लोग वोट देकर किसी को नहीं जिताएंगे, वोट वहीं की जनता का होता है और जनता को इतना विकास नहीं चाहिए कि उनकी वर्षों पुरानी संस्कृति बदल जाए।