ऋषभ चौरसिया:-उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ अपनी संस्कृति, इतिहास और अद्वितीय विरासत के लिए प्रसिद्ध है। नवाबों के इस शहर की तहजीब, अदब, शायरी, संगीत और खानपान की खुशबू हर तरफ फैली हुई है। यहां की पुरानी इमारतें, गलियां और नक्काशी दुनियाभर में मशहूर हैं। लखनऊ को अवध के नवाबों ने कई पहचान दी हैं, जैसे कि लखनऊ की चिकनकारी और अवधी खानपान।
लखनऊ घूमने का असली मजा तब आता है जब आप चौक की तंग गलियों का रुख करते हैं। यहां की चहल-पहल, ऐतिहासिक धरोहर और विभिन्न अवधी भोजन देखकर आप हैरान रह जाएंगे। क्या आपने कभी सोचा है कि इस जगह का इतिहास क्या रहा होगा? चलिए, आज हम आपको पुराने लखनऊ के दिल कहे जाने वाले चौक के बारे में बताते हैं।
इतिहासकार नवाब मसूद अब्दुल्लाह, जो शीश महल के रॉयल फैमिली से हैं और अवध के तीसरे बादशाह के वंशज हैं, बताते हैं कि नवाबी दौर में चौक का अलग ही रौनक थी। उस जमाने में चौक लखनऊ का प्रमुख बाजार हुआ करता था। गोल दरवाजे के अंदर घुसने पर सबसे पहले सराफा बाजार दिखता है, जो अब मुख्य रूप से चिकनकारी का व्यापार केंद्र है।
मसूद अब्दुल्लाह बताते हैं कि जैसे सुबह-ए-बनारस और शाम-ए-लखनऊ कहा जाता है, वैसे ही लखनऊ की शाम मशहूर थी। चौक में दाखिल होते ही भिश्ती अपने मशक से सड़कों पर पानी डालते थे। गली में थोड़ा आगे बढ़ते ही घुंगरू और गजल की आवाजें सुनाई देती थीं। वहां कोठे हुआ करते थे और तावायफें आदरपूर्ण और तमीजदार होती थीं। ये तावायफें कला की उत्कृष्ट रूप थीं, जहां अच्छे घरानों के लोग तहजीब सीखने आते थे।
चौक की गलियों में आगे बढ़ते ही आपको रहीम की निहारी, कुलचे, धर्मशाला की पूड़ी-कचोरी और जलेबी, टुंडे के कबाब, इत्र की दुकानें और हुक्का की दुकानें मिलेंगी। ये सभी चीजें लखनऊ के मिजाज को दर्शाती हैं। यहां का माहौल इतना खास है कि आपको लगेगा आप किसी दूसरी दुनिया में आ गए हैं।