योगी 2.0 का गठन हो चुका है। देश के सबसे बड़े सूबे में बीजेपी की शानदार जीत के बाद शपथ ग्रहण समारोह सम्पन्न हो चुका है। योगी मंत्रिमंडल ने शपथ ले ली है। जैसे चुनाव के बाद सभी पार्टियों और नेताओं की जीत-हार को लेकर चर्चाएं चल रही थीं, ठीक वैसे ही अब मंत्रिमंडल को लेकर समीक्षाओं का भाव बढ़ा हुआ है। आकलन किया जा रहा है कि मंत्री पद मिलने के पीछे कौन-से फैक्टर असरदार साबित हुए। यहां हम बात करेंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की। वाराणसी से किसे मंत्री बनाया और कौन मंत्री पद तक पहुंचने में असफल हो गया? लेकिन फोकस जिस नाम पर रहेगा वो है वाराणसी दक्षिणी से विधायक नीलकंठ तिवारी पर।
वाराणसी से तीन नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह मिली है। 2 नाम योगी सरकार के पहले कार्यकाल से हैं तो एक नाम की नई एंट्री हुई है। साथ ही एक बड़े चेहरे का पत्ता भी मंत्रिमंडल से कट भी गया है। शिवपुर से विधायक अनिल राजभर, वाराणसी उत्तरी से विधायक रविंद्र जायसवाल और दयाशंकर मिश्र दयालू को योगी 2.0 के मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। दयाशंकर मिश्र दयालू वाराणसी के रहने वाले बीजेपी के नेता हैं। हालांकि फिलहाल दयाशंकर मिश्र ना विधायक हैं और ना ही विधान परिषद के सदस्य हैं।

योगी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री रहे अनिल राजभर और रविंद्र जायसवाल को एक बार फिर मंत्रिमंडल में मौका मिला है। अनिल राजभर शिवपुर से बीजेपी के विधायक हैं। वाराणसी और आसपास के ज़िलों में बीजेपी के लिए राजभर समाज के नेता हैं। राजभर समुदाय का सबसे बड़ा नेता होने का दावा करने वाले ओम प्रकाश राजभर के बरक्स अनिल राजभर को बीजेपी पेश करती है। इस चुनाव में इस बात को अधिक बल भी मिल चुका है। ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर इस बार शिवपुर से ही चुनावी मैदान में थे। अनिल राजभर बनाम अरविंद राजभर। नतीजा इतिहास बन चुका है। शिवपुर से अनिल राजभर ने जीत दर्ज की है। अब अनिल राजभर योगी सरकार में मंत्री पद की शपथ भी ले चुके हैं।

दूसरा नाम है रविंद्र जायसवाल। वाराणसी शहर उत्तरी से रविंद्र जायसवाल ने जीत की हैट्रिक लगाई है। रविंद्र जायसवाल को व्यापारियों का नेता माना जाता है। व्यापारी वर्ग में रविंद्र जायसवाल की पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है। रविंद्र जायसवाल योगी सरकार के पहले कार्यकाल में भी मंत्री पद संभाल चुके हैं। जीत की हैट्रिक लगाकर रविंद्र जायसवाल ने अपनी स्थिति मजबूत की। बदले में उन्हें दोबारा मंत्रिमंडल में जगह दी गई है।

जीत कर भी क्यों हार गए नीलकंठ तिवारी?
नीलकंठ तिवारी, वाराणसी में एक बड़ा ब्राह्मण चेहरा। चुनाव के दौरान योगी सरकार पर सपा से लेकर बसपा तक ने ब्राह्मणों की अनदेखी का सियासी आरोप लगाया था। जिसके बाद कथित तौर पर ब्राह्मणों को अपने पाले में खींचने के लिए प्रदेश भर के बड़े ब्राह्मण नेताओं की एक मीटिंग भी बीजेपी ने चुनाव के बीच बुलाई थी। खैर। नीलकंठ तिवारी की जीत पर इस बार संकट के बादल मंडरा रहे थे। वाराणसी दक्षिणी से सपा ने मृत्युंजय मंदिर के महंत किशन दीक्षित को टिकट दिया था। क्षेत्र में किशन दीक्षित की पकड़ मजबूत मानी जाती है। अगर नीलकंठ तिवारी ब्राह्मण चेहरा हैं तो किशन दीक्षित एक मंदिर के महंत। इंच-इंच पर लड़ाई चल रही थी। हालांकि चुनाव नतीजे आए तो नीलकंठ तिवारी किसी भी तरह जीत हासिल करने में कामयाब हुए।
एक मुश्किल लड़ाई जीतने के बावजूद नीलकंठ तिवारी अपनी मंत्री की कुर्सी नहीं बचा पाए। योगी सरकार के पहले कार्यकाल में नीलकंठ तिवारी धर्मार्थ कार्य मंत्री थे। उनका ब्राह्मण चेहरा होना भी इस बार उनके पक्ष में नहीं गया। वाराणसी की चाय की दुकानों पर चर्चा है कि नीलकंठ तिवारी को लेकर क्षेत्र से जो रिपोर्ट आलाकमान तक पहुंची है वो ठीक नहीं है। बीजेपी के क्षेत्रीय कार्यकर्ता नीलकंठ तिवारी के स्वभाव से नाखुश हैं।
नीलकंठ तिवारी से जुड़े बेहद खास एक व्यक्ति नाम उजागर नहीं करने के भरोसे पर कहते हैं कि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व नीलकंठ तिवारी से बेहद ख़फा है। वजह है क्षेत्र में उनकी कमजोर होती सियासी पकड़ और दूर जाती जनता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुद नीलकंठ तिवारी की सीट पर रोड शो करना पड़ा था। उसके बावजूद नीलकंठ बड़ी मुश्किल से चुनाव जीत पाए। क्योंकि जनता में नीलकंठ तिवारी के प्रति नाराजगी है। वही खास व्यक्ति अंत में यह भी कहता है कि “इस बात से तो हर कोई वाकिफ है कि वाराणसी दक्षिणी की जीत नीलकंठ तिवारी से ज्यादा खुद पीएम मोदी की है।”
बहरहाल नीलकंठ तिवारी का मंत्रिमंडल से पत्ता कटने के बावजूद वाराणसी से तीन नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह मिली है। योगी सरकार के पहले कार्यकाल में भी वाराणसी से तीन ही मंत्री थे।