छत्तीसगढ़ का बस्तर. नाम सुनते ही दिमाग़ में पहली तस्वीर क्या बनती है? शायद एक ऐसी तस्वीर जिसमें माओवाद का आतंक झलकता है. तस्वीर जिसमें नक्सलियों के बंदूक की गोली की आवाज़ चीखती है. जिसमें नकस्ली और राज्य यानी स्टेट के बीच की लड़ाई से छलनी हुए आम लोगों के खून के लाल छींटे दिखते हैं. लेकिन इस तस्वीर में कुछ समाजसेवकों का चेहरा नहीं दिखता है जिन्होंने अबूझमाड़ पर लगे ‘लाल धब्बो’ को मिटाने के लिए अपने जान की परवाह कभी नहीं की. जिसका नतीजा रहा कि नक्सलियों के हाथों कांग्रेस नेता स्व. महेंद्र कर्मा (Mahendra Karma) की हत्या कर दी गई. अब एक और नाम इस दुनिया को अलविदा कह गया है. लंबी बीमारी के बाद सलवा जुड़ूम के प्रमुख नेता मधुकर राव (Madhukar Rao) का निधन हो गया.
छत्तीसगढ़ के नक्सल इलाकों से माओवादियों को उखाड़ फेंकने के लिए शुरू किया गया था सलवा जुड़ूम. जिसमें मधुकर राव बड़े नेताओं में शामिल थे. 55 साल की उम्र में मधुकर राव की मृत्यु हो गई है. पिछले कुछ वक्त से मधुकर राव की तबीयत बिगड़ी हुई थी. बीते मंगलवार को उन्हें बीजापुर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था. लेकिन उनकी तबीयत बिगड़ती ही चली गई. जिसके बाद बीजापुर के डॉक्टरों ने उन्हें तेलंगाना के वारंगल अस्पताल में रेफर कर दिया. वारंगल के अस्पताल में ही मधुकर राव ने अंतिम सास ली. इसके बाद उन्हें तेलंगाना से उनके गांव कुटरू लाया गया. जहां बुधवार को उनके बड़े भाई के. यादवराव ने मुखाग्नि दी.
मधुकर राव की कहानी:
मधुकर राव का जन्म 1968 में हुआ था. छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले के कुटरू गांव में मधुकर राव का जन्म हुआ था. मधुकर राव पेशे से शिक्षक थे. बाद में वे समाजसेवा के काम से जुड़ गए. 2005 में कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा ने सलवा जुड़ूम अभियान की शुरुआत की. तब महेंद्र कर्मा ने मधुकर राव को इस अभियान से जोड़ा. महेंद्र कर्मा के कहने पर ही मधुकर राव इस अभियान में कूदे.
2005-06 में मधुकर राव ने शिक्षक पद से इस्तीफा दे दिया और सलवा जुड़ूम अभियान में शामिल हो गए. इसके बाद महेंद्र कर्मा और दूसरे नेताओं के साथ मिलकर बस्तर में नक्सलियों के दांत खट्टे करते रहे. आम लोगों को नक्सलियों के आतंक से मुक्त कराया. इस अभियान ने माओवादियों को सलवा जुड़ूम से जुड़े नेताओं और लोगों की जान का दुश्मन बना दिया. नतीजा ये हुआ कि मई, 2013 में नक्सलियों ने महेंद्र कर्मा की हत्या कर दी. मधुकर राव की जान के पीछे भी नक्सली पड़े रहे.
सलवा जुड़ूम का अभियान जब कमजोर पड़ा और सुप्रीम कोर्ट ने इसे तत्काल रोकने का आदेश दिया तब मधुकर राव इससे अलग हुए. धीरे-धीरे पूरा अभियान ही रुक गया. जिसके बाद मधुकर राव ने अपने गांव कुटरू में ही एक आश्रम की शुरूआत की जिससका नाम पंचशील रखा. पंचशील आश्रम में आदिवासी बच्चों को शिक्षा दी जाती थी. कई आदिवासी बच्चे पंचशील आश्रम में ही रहते भी थे.
सलवा जुड़ूम अभियान:
छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख जिला है बीजापुर. बीजापुर के अम्बेली गांव से 2005 में एक अभियान की शुरुआत की गई. नाम रखा गया सलवा जुड़ूम अभियान. सलवा जुड़ूम यानी शांति यात्रा. छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाकों से ‘लाल आतंक’ को मिटाने के लिए इस अभियान का आगाज हुआ. कांग्रेस नेता स्व. महेंद्र कर्मा ने इस अभियान की शुरुआत की थी. जिसे छत्तीसगढ़ सरकार का समर्थन भी था. अभियान से मधुकर राव भी जुड़े. वो सलवा जुड़ूम को लीड करने वाले नेताओं में शामिल थे.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुड़ूम पर रोक लगा दिया. सलवा जुड़ूम अभियान पर ये आरोप लगा कि इसकी वजह से लाखों आदिवासियों को विस्थापित होना पड़ा. क्योंकि अभियान से भड़के नक्सलियों ने आदिवासियों पर कहर बरपाना शुरू कर दिया था. इसे रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई. जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस अभियान को तत्काल रोकने का आदेश दिया था.