बात आजादी के लड़ाई के वक़्त की है. जब महात्मा गांधी 1915 में भारत लौटते हैं. गांधी ने देखा कि देश में आजादी के लिए संघर्ष तो हो रहा है. लेकिन संघर्ष का कोई भी सिरा सीधे तौर पर जनता से नहीं जुड़ा है. यानी जन भागीदारी के मोर्चे पर ये संग्राम कमजोर था. तब गांधी ने स्वतंत्रता की लड़ाई का नया मॉडल दिया. जिसमें जनता अहिंसक आंदोलन के केंद्र में थी. आंदोलन की मसाल सीधे तौर पर जनता के हाथों में थी. ये जन मॉडल था.
पब्लिक. यानी लोकतंत्र की सबसे जरूरी और मजबूत कड़ी. फिर हमे अब्राहम लिंकन की वो परिभाषा भी याद आती है जिसे कक्षा-6 से ही हमें रटवाया गया है. “जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा किया गया शासन” लोकतंत्र है. इसी मॉडल पर राजधानी दिल्ली में एक आयोजन होने जा रहा है. जिसका नाम है- ‘वैखरी’. यानी विचारों का उत्सव. जिसकी हर कड़ी में जनता की मुख्य भूमिका है.
आने वाले 24 मार्च और 25 मार्च की तारीख को कैलेंडर पर पिन कर लीजिए. क्योंकि इस दिन दिल्ली में ITO के नजदीक सुरजीत भवन में वैखरी का आयोजन होने जा रहा है. वैखरी साहित्य, राजनीति, सिनेमा, मीडिया, जेंडर एवं परस्पर रुचि के ऐसे अन्य मुद्दों से जुड़े प्रख्यात व्यक्तित्वों को एक मंच पर लाने की पहल है, जिसमें व्याख्यान, पैनल डिस्कशन, सम्मान समारोह, हिन्दी-उर्दू कविता पाठ एवं क़िस्सागोई जैसे कार्यक्रम होंगे. आयोजन में वक्ताओं से मुखातिब होने के लिए “ऑथर्स कॉर्नर”, विभिन्न प्रकाशनों के स्टॉल और इस देश की संस्कृतिक विविधता को समेटे हस्तकला आदि की प्रदर्शनियां भी शामिल रहेंगी.
वैखरी की शुरुआत कैसे हुई?
विचारों के इस महासमागम की बीज कैसे पड़ी ये जानने के लिए इसके सूत्रधार के बारे में जानना जरूरी है. आवश्यक ये भी है कि इसके पीछे की कहानी को थोड़ा ठहर कर समझा जाए. नवंबर का महीना था. इंडिया टुडे ग्रुप की ओर से साहित्य आज तक का आयोजन किया जा रहा था. तीन दिनों तक चले साहित्य आज तक के कार्यक्रम में शिरकत करने हजारों की संख्या में लोग मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में पहुंचे. देश भर के नामचीन साहित्यकार, फिल्म कलाकार और अन्य क्षेत्रों के मशहूर नाम बतौर अतिथि पहुंचे.
सब कुछ ठीक चल रहा था. लेकिन तभी कुछ लोगों ने कार्यक्रम के स्पॉन्सरशिप पर सवाल खड़े कर दिए. सवाल नैतिकता के आधार पर था. दरअसल साहित्य आज तक का मुख्य स्पॉन्सर पान मसाला की एक कंपनी थी. इसी पर विवाद और बहस शुरू हो गई. यहां से वैखरी के विचार की एंट्री होती है. जाने-माने लेखक और जम्मू-कश्मीर पर अपनी किताबों के लिए लोकप्रिय अशोक कुमार पांडेय ने एक विचार साझा किया.
अशोक कुमार पांडेय बताते हैं कि
एक बड़ा साहित्य उत्सव चल रहा था, एक गुटका कंपनी के विज्ञापन को लेकर समर्थन-बहिष्कार की बहसें चल रही थीं. मैंने सवाल उठाया कि जब बड़ी पूंजी के सहारे उत्सव होंगे तो वैचारिक मूल्य भी उन्हीं के होंगे.. जन की बात करनी है तो आयोजन भी उसी के संसाधनों से होगा.
अशोक कुमार पांडेय कहते हैं कि “इसी बहस के दौरान योजना बनी और नाम दिया गया वैखरी.” ये पूरी बातचीत शुरुआती दौर में सोशल मीडिया पर ही हो रही थी. अशोक कुमार पांडेय ने ये बीड़ा उठाया कि जनता के पैसे से जनता के लिए एक आयोजन किया जाए. उन्होंने सोशल मीडिया पर साफतौर पर ये भी कहा कि वो खुद इस दौरान मंच पर कहीं नहीं रहेंगे. ताकि कोई सवाल ना खड़ा करे.
वैखरी की रूपरेखा:
वैखरी का आगाज़ 24 मार्च को दोपहर 2.30 बजे से होगा. आयोजन 25 मार्च तक जारी रहेगा. कार्यक्रम का पूरा शेड्यूल नीचे तस्वीरों के जरिए शेयर किया गया है. साथ ही एंट्री के लिए रजिस्ट्रेशन जरूरी है. जिसका लिंक नीचे दिया गया है.
रजिस्ट्रेशन लिंक: https://thecrediblehistory.com/vaikhari/
कार्यक्रमों की टाइमिंग यहां देखें:



वैखरी की सफलता जनता की भागीदारी पर निर्भर करता है. पूरे आयोजन की नींव जनता की भूमिका पर टिकी दिखती है. ऐसे में जरूरी है कि पब्लिक ऐसे आयोजनों में शामिल हो. ताकि इस तरह के पब्लिक मॉडल पर आयोजित होने वाले स्वतंत्र कार्यक्रमों को बढ़ावा मिले.