जोशीमठ. उत्तराखंड के चमोली ज़िले में स्थित वो जगह जिसे बद्रीनाथ धाम का प्रवेश द्वार कहा जाता है. इन दिनों पूरा जोशीमठ और वहां के रहवासी ‘दरकती जिंदगी’ से परेशान हैं. लोग अपना आशियाना छोड़ कर पलायन कर रहे हैं. लंबे वक्त तक धरना-प्रदर्शन के बाद अब जब प्रशासन की नज़र जोशीमठ पर पड़ी है तो आनन-फानन में फैसले लिए जा रहे हैं. लोगों को राहत देने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. लेकिन इन सब के बीच सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना आखिर क्या है जिसकी वजह से जोशीमठ में ये स्थितियां पैदा हुई हैं ?
जोशीमठ को बचाने के आंदोलन में शामिल लोग सीधे तौर पर NTPC जल विद्युत परियोजना और तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना को इस स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. कहा जा रहा है कि तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना के तहत सुरंग बनाने के लिए जो विस्फोट किए जा रहे हैं उसकी वजह से धरती फट रही है, जोशीमठ में स्थित घरों की दीवारें दरक रही हैं. दावा है कि इन विस्फोटों की वजह से जोशीमठ की जमीन खोखली हो गई है. जिसका परिणाम इस रूप में सामने आ रहा है.
क्या है तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना?
साल 2006 में NTPC ने एक परियोजना बनाई. चमोली जिले में धौलीगंगा नदी पर 520 मेगावाट की तपोवन विष्णुगाड परियोजना बनी. जिसमें 130 मेगावाट की चार पेल्टन टरबाइन और धौलीगंगा नदी पर निर्मित एक बैराज शामिल होगा. बैराज की लंबाई 200 मीटर और ऊंचाई 22 मीटर होगा. 12 मीटर ऊंचे और 14 मीटर चौड़ाई के 4 गेट भी बनाए जाएंगे.
फिलहाल इस परियोजना के तहत बैराज का निर्माण कार्य जारी था. साथ ही सुरंग के अंदर टनल बोरिंग मशीन यानि TBM निकालने का काम चल रहा था. हालांकि जोशीमठ को बचाने के लिए लड़ाई लड़ रहे लोगों ने जब विरोध किया तो ये कार्य रोक दिया गया है. जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के आंदोलन के बाद इन कार्यों पर ब्रेक लगा.
धरना-प्रदर्शन, चक्का जाम और हालात बदतर हो गए तब जाकर शासन-प्रशासन ने इन तबाही को आमंत्रित करने वाले कार्यों पर रोक लगाई. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी है. हर दिन सैकड़ों की संख्या में परिवार अपना घर-बार छोड़कर दूसरे इलाकों में जाने को मजबूर हैं. क्योंकि लगातार घरों-दुकानों की दीवारों में दरार पड़ रही है. अब देखने वाली बात है कि आखिर ये विभीषिका कहां और कब रुकती है.