“हमारी एक महिला साथी थी, सारिका भारद्वाज. उसके दो बच्चे थे. कैंसर की बीमारी थी. नौकरी की तलाश में थी. लेकिन इलाज़ के दौरान मृत्यु हो गई. बांदा के सोनू रैकवाल ने आर्थिक तंगी और बेरोजगारी से त्रस्त होकर फांसी ही लगा लिया. बहुत लोग मर गए सर. हम नहीं चाहते कि अब फ़िर कोई ऐसा करे. दो ही दिन पहले मेरे एक साथी ने फोन किया. बहुत निराशा के साथ बात कर रहा था.” निराशा भरी और हांफती हुई आवाज़ के साथ ही जय नारायण तिवारी ये बातें बताकर चुप हो जाते हैं. उन्हें मेरे अगले सवाल का इंतज़ार था.
जय नारायण तिवारी ट्रैफिक ब्रिगेड के जवान थे. अब तो ये ब्रिगेड ही नहीं है. जिन लोगों की मौत वो उंगली पर गिना रहे थे वो सब भी ट्रैफिक ब्रिगेड के जवान थे. यह सभी लोग वाराणसी में ट्रैफक ब्रिगेड के जवान के तौर पर दो बार करीब 3 साल तक अपनी सेवाएं दे चुके हैं. पहली बार 2015 से 18 तक और दूसरा मौका 2019 के लोकसभा चुनाव का था. इन दोनों कार्यकालों में वाराणसी के करीब 100 ट्रैफिक ब्रिगेड के जवानों पर यह जिम्मेदारी थी कि शहर की ट्रैफिक व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके.
जय नारायण तिवारी अपनी ड्यूटी के सबूत के तौर पर यातायात निरीक्षक वाराणसी द्वारा जारी एक प्रमाण पत्र दिखाते हैं. जिसमें साफ लिखा है कि “प्रमाणित किया जाता है कि टीआरबी जय नारायण तिवारी सन ऑफ स्व. जितेंद्र नाथ तिवारी जनपद वाराणसी का मूल निवासी है. जिन्होंने दिनांक 28.11.2015 से दिनांक 31.08.2018 तक यातायात पुलिस लाइन वाराणसी में ट्रैफक ब्रिगेड के पद पर कार्य करते हुए महानगर वाराणसी की यातायात व्यवस्था की सुगम संचालन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. मैं इनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं. इस प्रमाण पत्र पर यातायात निरीक्षक का मुहर और हस्ताक्षर है.

टीआरबी के जवान रहे जय नारायण फोन पर बातचीत के दौरान हमें बताते हैं कि “31 अगस्त 2018 को बगैर किसी सूचना के सभी टीआरबी जवानों को उनके पद से हटा दिया जाता है. यानी कि ड्यूटी से मुक्त कर दिया जाता है. इसके बाद यातायात निरीक्षक वाराणसी द्वारा एक प्रमाण पत्र सभी जवानों को जारी कर दिया जाता है. बतौर अनुभव सर्टिफिकेट.”

बकौल जयनारायण, कुछ ही महीनों के बाद लोकसभा चुनाव 2019 से ठीक पहले अप्रैल 2019 में सभी टीआरबी जवानों को एक बार फिर ड्यूटी पर लगा दिया जाता है. वाराणसी के मंडल आयुक्त के आदेश पर इन जवानों को शहर के चौक चौराहों और फैंटम की ड्यूटी बहाल की गई. कुछ दिनों के बाद इन्हें फ़िर एक आदेश जारी कर ड्यूटी से हटा दिया गया. इस दौरान ड्यूटी के लिए इन सभी को 200 रुपये प्रति दिन के हिसाब से मानदेय दिया गया.

2019 के बाद से टीआरबी के जवान बेरोजगार हैं. उनके पास कोई नौकरी नहीं. घर का खर्च जैसे-तैसे चल रहा है. आर्थिक तंगी ने कईयों की जान भी ले ली है. जय नारायण से जब मैंने पूछा कि आपके घर का खर्च कैसे चल रहा है? जवाब में जयनारायण कहते हैं कि “सर क्या ही बताएं कैसे चल रहा है. तहसील पर कुछ काम करवाते हैं तो उसके एवज में महीने में 4 से 5 हज़ार की कमाई हो जाती है. लेकिन इतने भर से घर तो नहीं चलता है तो बस जी रहे हैं. नौकरी की आस में हैं.”
इन जवानों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि ये लोग किसी सरकारी भर्ती परीक्षा की तैयारी नहीं कर सकते और ना ही भर्ती परीक्षाओं में शामिल हो सकते हैं. क्योंकि उम्र इनके हक में नहीं है. जो मौका इनके पास भर्ती परीक्षाओं की तैयारी का था उस वक्त ये लोग वाराणसी में गुजरात मॉडल के तर्ज पर बनाए गए ट्रैफिक ब्रिगेड के जवान बन चुके थे. इन्हें लगा था कि अब इनकी नौकरी लग चुकी है. पूरी शिद्दत के साथ नौकरी की लेकिन 3 साल की नौकरी के बाद इन्हें बेरोजगार होना पड़ा.

ट्रैफिक ब्रिगेड का गठन:
गुजरात मॉडल के तर्ज पर वाराणसी में 2015 में ट्रैफिक ब्रिगेड का गठन किया गया उस वक्त 100 जवानों की भर्ती की गई थी. जिन्हें शहर के चौक-चौराहों से लेकर सुरक्षा के लिहाज से जरूरी जगहों पर तैनात किया गया. फैंटम के तहत भी इनकी ड्यूटी लगाई गई. जिसके लिए प्रतिदिन ₹200 मानदेय दिए गए. लेकिन 2019 के बाद ट्रैफिक ब्रिगेड को भंग कर दिया गया. मुश्किल तब बढ़ी जब ब्रिगेड के किसी भी जवान को उत्तर प्रदेश सरकार की यातायात विभाग में समायोजित नहीं किया गया.
गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने प्रदेश में ट्रैफिक ब्रिगेड का गठन किया था. 2014 में नरेंद्र मोदी वाराणसी से लोकसभा का चुनाव लड़ने आए. सांसद चुने गए और देश के प्रधानमंत्री भी बने. वाराणसी का सांसद रहते हुए पीएम मोदी ने वाराणसी में गुजरात ट्रैफिक मॉडल को शहर में लागू किया. यहां भी ट्रैफिक ब्रिगेड का गठन किया गया और 100 जवानों की भर्ती हुई. इनके जिम्मे शहर की यातायात व्यवस्था रही.
क्या है मांग?
ट्रैफिक ब्रिगेड के जवान रहे और अब बेरोजगार हो चुके इन लोगों की मांग है कि इन्हें उत्तर प्रदेश शासन के तहत उत्तर प्रदेश होमगार्ड में समायोजित किया जाए या फिर शासन के तृतीय अथवा चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के तौर पर स्थाई या संविदा के रूप में नियुक्ति दी जाए.
ये लोग मुख्यमंत्री शिकायत पोर्टल आइजीआरएस पर अपनी मांग दर्ज करा चुके हैं. इसके अलावा गोरखपुर से लेकर लखनऊ तक जन सुनवाई के दौरान ये जवान अपनी मांग सरकार तक पहुंचा चुके हैं. लेकिन शासन के स्तर पर अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया है. जय नारायण तिवारी हमसे कहते हैं कि “हमने अपनी बात तो दिल्ली तक पहुंचाई है, ऑनलाइन सरकारी पोर्टल के जरिए अपनी मांग सरकार को बताई है. लेकिन सरकार कोई सुनवाई नहीं कर रही है. शायद हमारी संख्या कम है हम अब सिर्फ 70 से 80 लोग बचे हैं इसलिए भी हमारी सुनवाई नहीं हो रही है.”