महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ. वाराणसी के कैंट रेलवे स्टेशन से कुछ मिनटों की दूरी पर विश्वविद्यालय का मुख्य परिसर स्थित है. 1921 में इस विश्वविद्यालय की स्थापना महात्मा गांधी की प्रेरणा से हुई थी. वही गांधी जिन्होंने सत्य के साथ प्रयोग करना सिखाया. गांधी की पूरी धारा सत्य के रास्ते पर थी. लेकिन उनके नाम पर और उनकी प्रेरणा से स्थापित महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ अब फर्ज़ीवाड़े और फेक न्यूज़ की सबसे बड़ी मशीनरी बन गई.
तो हुआ ये कि 6 अगस्त की सुबह-सुबह घर-घर अख़बार पहुंचे. अख़बारों में भीतर के पेज पर काशी विद्यापीठ के नाम एक बड़ी उपलब्धि दर्ज होने की ख़बर छपी थी. ख़बर ये कि काशी विद्यापीठ को वाराणसी में सरकारी यूनिवर्सिटी की रैंकिंग में नंबर-1 स्थान मिला है. उत्तर प्रदेश में चौथी रैंक और पूरे भारत में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ को 37वां स्थान मिला है.
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय के ऑफिशियल सोशल मीडिया पेज पर आधिकारिक तौर पर ये ख़बरें पोस्ट की गईं. बाकायदा विद्यापीठ ने एक पोस्टर बनाकर फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर भी पोस्ट किया है. विश्वविद्यालय से जुड़े छात्रों ने इस पोस्टर को सोशल मीडिया पर जमकर शेयर भी किया है.
रैंकिंग का फर्ज़ी दावा?
अब हम आपको इंडिया टुडे मैग्जीन की सर्वे रिपोर्ट और काशी विद्यापीठ द्वारा किए जा रहे दावे की तुलना करके बताते हैं कि आख़िर रैंकिंग से जुड़ा ये दावा क्यों ग़लत मालूम पड़ता है. इस ख़बर को देखने के बाद हमने सबसे पहले विद्यापीठ के जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) डॉ. नवरत्न सिंह को व्हाट्सएप पर मैसेज किया. हमने डॉ. नवरत्न को विद्यापीठ के इंस्टा पोस्ट की स्क्रीनशॉट भेजकर इस दावे के बारे में जानकारी ली. बदले में उन्होंने हमें दो अख़बारों के कटआउट भेजे. जिसमें विद्यापीठ की रैंकिंग की ख़बर छपी थी.
इसके बाद हमने पीआरओ से रैंकिंग सूची भेजने के लिए कहा. डॉ. नवरत्न ने हमें एक पीडीएफ फ़ाइल भेजी. जिसपर सबसे पहले हमारी नज़र पड़ी ‘Forwarded many times’ पर. यानी कि हम तक आने से पहले ये पीडीएफ फ़ाइल कई लोगों को शेयर की जा चुकी थी.
पीडीआफ फ़ाइल जब हमने ओपन की तो उसके पहले पेज का नंबर 80 है. यानी 80 नंबर से इस पत्रिका की शुरुआत होती है. पूरा पीडीएफ 33 पेज का है. जबकि इंडिया टुडे पत्रिका के जिस अंक में विश्वविद्यालयों की रैंकिंग प्रकाशित की गई है वो 200 से ज्यादा पेज की है.
इंडिया टुडे की रैंकिंग लिस्ट होने का दावा किए जा रहे पीडीएफ फ़ाइल के 29 नंबर पेज पर सरकारी विश्वविद्यालयों की रैंकिंग है. जिसमें 37वें स्थान पर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ का नाम दर्ज है. तो फ़िर ये दावा ग़लत कैसे हुआ? इस रैंकिंग के फर्ज़ी होने का संदेह क्यों है? तो चलिए इन सवालों के जवाब के लिए विद्यापीठ की रैंकिंग वाली लिस्ट और इंडिया टुडे मैग्जीन के सर्वे की तुलना करते हैं.
इंडिया टुडे मैग्जीन से मेल नहीं:
इंडिया टुडे और MDRA (Marketing and Development Research Associates) ने मिलकर भारत भर के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में कुछ मापदंडों के आधार पर सर्वे किया है. सर्वे के आधार पर रैंकिंग लिस्ट तैयार की गई है. इस सर्वे के बाद विषयवार तरीके से रैंकिंग की गई है. यानी कि इंजिनियरिंग के क्षेत्र के बेस्ट कॉलेज, मेडिकल के क्षेत्र के बेस्ट कॉलेज, लॉ के क्षेत्र के बेस्ट कॉलेज, ऐसे ही पत्रकारिता के क्षेत्र के सबसे बेहतर कॉलेजों की रैंकिंग की गई है. इंडिया टुडे ने अपनी मैग्जीन में कहीं भी सामान्य रैंकिंग नहीं की है. यानी कि देश के सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों का एक साथ रैंकिंग नहीं किया गया है. जैसा कि काशी विद्यापीठ ने दावा किया है.
फर्ज़ीवाड़े के सबूत !
विद्यापीठ प्रशासन द्वारा शेयर किए जा रहे पीडीएफ फ़ाइल और इंडिया टुडे के असली मैग्जीन में कई अंतर जो आपको समझना होगा.
पहला सबूत- विद्यापीठ ने जिसे इंडिया टुडे मैग्जीन बताकर शेयर किया उसके कवर पेज पर कहीं भी प्रिंट लाइन नहीं है. यानी ये नहीं बताया गया है कि मैग्जीन के पब्लिश होने की डेट क्या है? पत्रिका का रजिस्ट्रेशन नंबर क्या है? जबकि इंडिया टुडे के हर मैग्जीन के कवर पेज पर ये जानकारी विस्तार में छापी जाती है. यहां तक कि मैग्जीन का दाम तक लिखा होता है.

दूसरा सबूत- विद्यापीठ ने जिसे मैग्जीन बताकर शेयर किया उसकी प्रिंट लाइन में 14 अगस्त, 2023 की तारीख छपी है. यानी क़रीब एक हफ़्ते बाद की तारीख. जबकि इंडिया टुडे ने कॉलेजों की रैंकिंग की रिपोर्ट 3 जुलाई, 2023 को प्रकाशित अंक में छापा था.

तीसरा सबूत- विद्यापीठ ने जिसे मैग्जीन बताकर शेयर किया उसमें पहला पेज नंबर-80 है. पूरी मैग्जीन 33 पेज की है. साथ ही नंबरिंग का तरीका भी प्रोफेशनल नहीं है जैसा कि अमूमन पत्रिकाओं में देखने को मिलता है. एक पेज पर नंबर राइट साइड में लिखा है तो दूसरे पेज पर लेफ्ट साइड में.

चौथा सबूत- इंडिया टुडे पत्रिका में रैंकिंग विषय के आधार पर की गई है. विद्यापीठ प्रशासन जो पीडीएफ फ़ाइल शेयर कर रहा है उसमें मेडिकल कॉलेजों की रैंकिंग में पहले और दूसरे स्थान पर जिन कॉलेजों का नाम है वही नाम इंडिया टुडे की ओरिजिनल मैग्जीन में भी है. लेकिन दूसरे रैंक के बाद पूरी रैंकिंग अलग-अलग है. जिससे शेयर किए जा रहे रैकिंग के फर्ज़ी होने का दावा और भी पुख्ता हो जाता है.

पांचवां सबूत: विद्यापीठ के पीआरओ ने जो पीडीएफ फ़ाइल हमे या पीआरओ के ऑफिशियल ग्रुप में भेजी है उसमें और सोशल हैंडल से किए गए आधिकारिक पोस्ट के कवर पेज में भी फर्क है. विद्यापीठ के ऑफिशियल अकाउंट्स से जो पोस्टर शेयर किया गया है उसमें इंडिया टुडे के 3 जुलाई के अंक का कवर पेज लगा हुआ है. जबकि जिसे मैग्जीन बताकर शेयर किया जा रहा है उसकी तारीख 14 अगस्त की है.

क्या विद्यापीठ प्रशासन रैकिंग में फर्ज़ीवाड़े के संदेह पर सफाई देगा? क्या विश्वविद्यालय के कुलपति ये बात स्पष्ट करेंगे कि विश्वविद्यालय को रैंकिंग की सूची कहां से मिली, आख़िर सोर्स क्या है? और अगर ये दावा ग़लत है तो क्या विश्वविद्यालय प्रशासन इन तमाम सबूतों को खारिज करने के लिए सबूत देगा?