Varanasi: काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानि BHU और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ (Mahatma Gandhi Kashi Vidyapith. वाराणसी स्थित ये दो सबसे बड़े विश्वविद्यालय हैं. जनपद में कुल 4 विश्वविद्यालय हैं. इन दो के अलावा संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय और केन्द्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय है. अमर उजाला में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक इन विश्वविद्यालयों में अर्बन नक्सल ने पैठ जमा ली है. मामला इसलिए भी गंभीर है क्योंकि वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का संसदीय क्षेत्र है.
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि खूफिया विभागों को अर्बन नक्सल के पैठ की जानकारी मिली है. ये लोग विश्वविद्यालयों के धरना-प्रदर्शनों में भी शामिल रहते हैं. साथ ही शहर के बुद्धिजीवि वर्ग को भड़काने का काम भी कर रहे हैं. रिपोर्ट की मानें तो अर्बन नक्सल छात्र आम छात्र-छात्राओं के बीच अपने विचार का प्रचार-प्रसार करते हैं.
सुरक्षा एजेंसियां इस बाबत सतर्क हो गईं हैं. साथ ही नक्सलियों के नेटवर्क को तोड़ने की कोशिश की जा रही है. विश्वविद्यालय की गतिविधियों की निगहबानी की जा रही है. रिपोर्ट का दावा है कि ठोस सूचना के बाद वाराणसी और पूरे पूर्वांचल से कुल ऐसे 130 अर्बन नक्सलियों को चिन्हित किया गया है. जिनकी निगरानी की जा रही है. ताकि 2024 लोकसभा चुनाव से पहले किसी तरह का माहौल ना खराब हो.
क्या है हकीकत ?
अमर उजाला ने अपनी ख़बर में कहीं किसी सोर्स का नाम नहीं लिखा है. ये जानकारी शामिल नहीं की गई है कि आखिर किस आधार पर ये दावा किया जा रहा है. सवाल ये है कि क्या ये ख़बर सूत्रों के आधार पर लिखी गई है? वाराणसी LIU से जुड़े एक सूत्र से हमने इस मसले पर बातचीत की. उन्होंने बताया कि “धरना-प्रदर्शनों पर तो हमारी नज़र रहती ही है. लेकिन ऐसी कोई गतिविधि नहीं है जिससे अर्बन नक्सल वाली रिपोर्ट बने. सुरक्षा एजेंसियों के पास विश्वविद्यालय में अर्बन नक्सलियों की पैठ की कोई रिपोर्ट नहीं है.”
कांग्रेस से जुड़े छात्र संगठन NSUI के कार्यकर्ता और BHU के ही छात्र राणा सिंह रोहित से हमने बात की. रोहित कहते हैं कि “हम पढ़ने लिखने वाले छात्र हैं, हमारे खिलाफ कोई आपराधिक और गैर कानूनी मामला नहीं हैं. ऐसे में किसी प्रकार का भी इनका दबाव कोई काम नहीं करता हैं. अब एक नया मनोवैज्ञानिक दबाव कैंपस और कैंपस के बाहर मुखर रहने वाले लोगों के ऊपर बनाने का प्रयास है।”
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ी और BHU की ही छात्रा साक्षी सिंह से हमने इस मुद्दे पर बातचीत की. साक्षी सिंह कहती हैं कि “रिपोर्ट आने से पहले से ही हम लोग इस बात को देख रहे हैं. CAA प्रोटेस्ट के दौरान BHU और विद्यापीठ के कुछ प्रोफेसरों ने इसका विरोध किया. जातिगत भेदभाव पैदा करने के लिए संगोष्ठियों का आयोजन किया जाता रहा है. उसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के ऐसे प्रोफेसरों को बुलाया जाता है जो अंवाछनीय तत्व के रूप में जाने जाते हैं.” साक्षी सिंह अपने बयान में अर्बन नक्सल वाली रिपोर्ट को ठीक मानती दिखती हैं.
अर्बन नक्सल शब्द की सियासत:
भीमा-कोरेगांव मामला. जिसके आरोपियों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने तक के आरोप लगे हैं. इसी मामले के बाद ही अर्बन नक्सल शब्द चर्चा में आया. सीधे तौर पर कहा जाए तो अर्बन नक्सल का मतलब ऐसे नक्सलियों से है जो शहरी क्षेत्र में रहते हैं. या फिर शहरी क्षेत्रों के ऐसे बुद्धिजीवि लोग जो नक्सवाद की विचारधारा का समर्थन करते हैं या फिर उससे सहानुभूति रखते हैं वो अर्बन नक्सल कहे जाते हैं. फिल्म निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री ने 2018 में एक किताब भी लिखी थी जिसका नाम ‘अर्बन नक्सल’ था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री तक इस अर्बन नक्सल शब्द का इस्तेमाल सरकार से सवाल पूछने वालों के खिलाफ कर चुके हैं. 18 दिसंबर, 2019 को झारखंड की एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने CAA के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों के लिए कांग्रेस और अर्बन नक्सलियों को जिम्मेदार ठहराया था.
16 नवंबर, 2019 को जम्मू-कश्मीर में एक रैली हो रही थी. देश के गृह मंत्री अमित शाह इस रैली को संबोधित कर रहे थे. जहां बोलते हुए अमित शाह ने आतंकवादियों के साथ ही अर्बन नक्सल के खिलाफ भी सख्त और निर्णायक कार्रवाई की बात कही थी.
हालांकि एक RTI के जवाब में गृह मंत्रालय ने बताया था कि अर्बन नक्सल को लेकर कोई जानकारी नहीं है. अर्बन नक्सल के संगठन या फिर कितने अर्बन नक्सल सक्रिय हैं इस तरह की कोई जानकारी गृह मंत्रालय के पास नहीं है. लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार के मंत्री और खुद प्रधानमंत्री, गृहमंत्री इस नाम का सियासी इस्तेमाल करते हैं.