आनन्द कुमारः-
आज, जब हम स्वतंत्रता की 77वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, यह एक अवसर है आत्ममंथन और आत्मनिरीक्षण का। स्वतंत्रता का उत्सव हम सभी के लिए गर्व और खुशी का कारण है, लेकिन इस मौके पर यह समझना भी आवश्यक है कि हमने 77 वर्षों में क्या हासिल किया है और कौन-कौन सी चुनौतियाँ हमारे सामने हैं। इस अवसर पर एक बार फिर हमें यह सवाल उठाना होगा कि क्या हम वास्तव में अपने लोकतंत्र के उद्देश्यों को पूरा कर पा रहे हैं? जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले से अपने भाषण में आत्मनिर्भर भारत, डिजिटल इंडिया, और सबका साथ, सबका विकास की बातें करेंगे, तब हमें यह भी देखना होगा कि क्या सरकार इन मुद्दों पर वास्तविक प्रगति कर रही है या केवल दिखावा कर रही है।
सरकार की विफलता: एक गंभीर समीक्षा
स्वतंत्रता के इस महत्वपूर्ण अवसर पर, हमें सरकार की विफलताओं और उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, जिन्हें सरकार ने नजरअंदाज किया है।
- महिला सुरक्षा: एक काला अध्याय
हाल ही में कोलकाता में एक डॉक्टर के साथ हुए भयावह रेप और मर्डर ने पूरे देश को झकझोर दिया है। डॉक्टरों की विरोध प्रदर्शन और पूरे देश की चिंता इस बात को स्पष्ट करती है कि महिला सुरक्षा के मामलों में सरकार की गंभीरता कितनी कम है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, बलात्कार के मामलों में निरंतर वृद्धि हो रही है, लेकिन सरकार की प्रतिक्रिया केवल बयानबाजी तक सीमित है। सरकारी तंत्र के पास इस गंभीर मुद्दे के ठोस समाधान की कोई योजना नहीं है।राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े भी चिंताजनक हैं। 2021 में 31,677 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए, जो 2020 में दर्ज मामलों से अधिक हैं। इन मामलों के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया और ठोस कार्रवाई की कमी एक गंभीर सवाल है। - शिक्षा प्रणाली का पतन
देश की शिक्षा प्रणाली में निरंतर गिरावट एक और गंभीर समस्या है। सरकारी स्कूलों और कॉलेजों की बदहाल स्थिति और घटिया शिक्षा मानक यह दर्शाते हैं कि सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। शिक्षा पर खर्च बढ़ाने और गुणवत्ता सुधारने की बजाय, सरकार ने केवल कागज़ी योजनाओं का ढोल पीटा है। - ट्रेन हादसे और भ्रष्टाचार
ट्रेन हादसों की बढ़ती संख्या यह दर्शाती है कि रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा में सरकार की गंभीर लापरवाही है। लगातार हो रहे हादसे और उनके बाद की कमीशन खोरी यह बताती है कि भ्रष्टाचार ने सरकारी विभागों को जकड़ लिया है। सरकार की घोषणाएँ और योजनाएँ सिर्फ सतही सुधारों तक सीमित हैं, जबकि वास्तविकता में स्थिति बदतर होती जा रही है। - महंगाई और बेरोजगारी का संकट
महंगाई और बेरोजगारी आज की सबसे बड़ी समस्याएँ बन चुकी हैं। महंगाई ने आम आदमी की ज़िंदगी को दुष्कर बना दिया है और बेरोजगारी ने युवाओं के भविष्य को अंधकारमय कर दिया है। सरकार ने इन समस्याओं के समाधान के लिए न तो कोई ठोस नीति बनाई है और न ही कार्यान्वयन की दिशा में गंभीरता दिखाई है।
सरकार के दावों और वास्तविकता के बीच का अंतर
प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में आत्मनिर्भर भारत और डिजिटल इंडिया के दावे किए जाएंगे, लेकिन इन दावों की वास्तविकता से आम जनता का सामना होता है। सरकारी योजनाओं की ग्राउंड रियलिटी से यह स्पष्ट होता है कि सरकार की प्राथमिकताएँ केवल वोट बैंक की राजनीति और छवि सुधार तक सीमित हैं। जमीनी स्तर पर वास्तविक सुधार की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
स्वतंत्रता की 77वीं वर्षगांठ पर हमें यह आत्ममंथन करना होगा कि हम किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। सरकार की विफलताओं को उजागर करना और जनसरोकार की दिशा में ठोस कार्रवाई की मांग करना समय की आवश्यकता है। अगर हम वाकई एक समृद्ध और सशक्त भारत चाहते हैं, तो हमें केवल बडे़-बड़े दावों और भाषणों पर निर्भर रहने की बजाय, वास्तविक और ठोस कदम उठाने होंगे।