ऋषभ चौरसियाः-
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कोटे में कोटा की मंजूरी के हालिया फैसले ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। इस मुद्दे पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। मायावती ने कोटा के भीतर कोटा के प्रस्ताव का विरोध करते हुए सवाल उठाया कि इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में क्यों नहीं शामिल किया गया।
मायावती ने अपने एक्स (पूर्व में ट्विटर) हैंडल पर लिखा कि सामाजिक उत्पीड़न की तुलना में राजनीतिक उत्पीड़न कुछ भी नहीं है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या देश में करोड़ों दलितों और आदिवासियों का जीवन सम्मान और स्वाभिमान से भरा हुआ है? यदि नहीं, तो जाति के आधार पर विभाजित किए गए इन वर्गों के बीच आरक्षण का बंटवारा कितना उचित है?
उन्होंने आगे लिखा कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों का अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रति रवैया उदारवादी रहा है, लेकिन सुधारवादी नहीं। मायावती ने आरोप लगाया कि ये पार्टियां इन वर्गों के सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति के पक्षधर नहीं हैं, अन्यथा इन वर्गों के आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में डालकर इसकी सुरक्षा की जाती।
वहीं, उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग के अध्यक्ष बृजलाल ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि इस वर्ग के वे लोग जो आरक्षण का लाभ लेकर वरिष्ठ अधिकारी बन चुके हैं, उन्हें अब इसका लाभ नहीं मिलना चाहिए। इसके बजाय, वंचित लोगों को इसका लाभ मिलना चाहिए ताकि वे भी मुख्यधारा में शामिल हो सकें।