वाराणसी: महाकवि जयशंकर प्रसाद की जयंती पर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में नाटकीय उत्सव एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया है. विश्वविद्यालय के भगवानदास केंद्रीय पुस्तकालय स्थित समिति कक्ष में जयशंकर प्रसाद पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसमें अतिथि के रूप में ललित कला विभाग के प्रोफेसर सुनील कुमार विश्वकर्मा, बीएचयू से प्रोफेसर नीरज खरे एवं प्रोफेसर सुमन जैन और मानविकी संकाय अध्यक्ष प्रोफेसर अनुराग कुमार मौजूद रहे.
राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रो. बलिराज पाण्डेय ने की. बता दें कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का संयोजन जयशंकर प्रसाद की प्रपौत्री कविता कुमारी और महाकवि जयशंकर प्रसाद फाउंडेशन ने किया है. संगोष्ठी के दौरान जयशंकर प्रसाद की रचनाओं पर विद्वानों ने अपना वक्तव्य दिया. साथ ही उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता पर भी बातचीत की.
कौन थे जयशंकर प्रसाद:

महाकवि जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 काशी में हुआ था. जयशंकर प्रसाद सिर्फ एक कवि नहीं थे बल्कि नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार और निबंध लेखक भी थे. काशी में जन्मे प्रसाद ने एक तरह से छायावाद की स्थापना की. वे हिंदी के छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक हैं. जयशंकर प्रसाद के कारण ही खड़ी बोली हिंदी काव्य की निर्विवाद शुद्ध भाषा बन गई.
नाटक लेखन में भारतेंदु के बाद अलग धारा बहाने वाले युग प्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक मजे से पढ़ते हैं। जयशंकर प्रसाद की रुचि बचपन से ही साहित्य और कला में थी. बताया जाता है कि उन्होंने 9 वर्ष की उम्र में ही “कलाधर” के नाम से ब्रज भाषा में एक सेवया लिखी थी. प्रसाद की सबसे प्रसिद्ध उपन्यास कंकाल, तितली और इरावती (अपूर्ण) थी. जयशंकर प्रसाद लंबे वक़्त तक क्षय रोग से पीड़ित थे. जिसके बाद 15 नवंबर, 1937 को उनकी मृत्यु हुई थी.
खबर तक मीडिया के लिए यह खबर पुष्पेश राय ने लिखी है.