काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानि BHU. इसकी स्थापना को लेकर कितनी किंवदंतीयां सुनाई जाती हैं. कोई कहता है काशी नरेश ने दान में ज़मीन दे दी. कोई कहानी सुनाता है कि काशी नरेश ने मदन मोहन मालवीय को कहा था, सूर्यास्त से पहले जितनी ज़मीन पैदल घूम पाओगे उतना दान दे देंगे और फिर ज़मीन मिल गई. लेकिन BHU का ही कोई प्रोफेसर दस्तावेजों के हवाले से कहे कि महामना ने ये ज़मीन लाखों रुपए में खरीदी थी तब आप क्या कहेंगे?

BHU में इतिहास विभाग के प्रोफेसर ध्रुव कुमार सिंह ने एक बड़ा खुलासा किया है. प्रो. ध्रुव और उनकी टीम की रिसर्च में खुलासा हुआ है कि मदन मोहन मालवीय को काशी नरेश ने 13 सौ एकड़ ज़मीन दान में नहीं दी थी. बल्कि 6 लाख रुपए में 1164 एकड़ ज़मीन महामना ने खरीदी थी. प्रो. ध्रुव की टीम ने कई राज्यों में शोध कार्य कर ये जानकारी सामने लाई है.
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रो ध्रुव की रिसर्च में ये बात सामने आई है कि मदन मोहन मालवीय ने 900 घरों और 7000 पेड़ों वाली ज़मीन का अधिग्रहण करवाया था. कुछ खेती लायक ज़मीन का भी अधिग्रहण हुआ था. ये सारा काम पूरे कानूनी प्रक्रिया के तहत हुआ था. उस वक़्त के मुताबिक ज़मीन के रेट लगे थे. दस्तावेजों के अनुसार 17 नवंबर, 1916 को एक ब्रिटिश अधिकारी ने इस अधिग्रहण के संदर्भ में एक आदेश जारी किया था. जिसमें 1164 एकड़ ज़मीन का जिक्र था.
क्या है किस्सा:
काशी में और उससे बाहर भी BHU को लेकर कई कहानियां सुनाई जाती हैं. ज़ाहिर है आज़ादी के वक़्त इस तरह का काम होना अपने आप में बड़ी बात है. बात अब 100 साल से पुरानी हो चुकी है. तो कहानियां तैरेंगी ही. BHU की स्थापना 1916 में हुई थी. शिक्षा की क्रांति के लिए बनी महामना की बगिया. जिसके पहले कुलपति देश के प्रथम उप राष्ट्रपति यानि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन बने थे.
कहते हैं एक दिन मदन मोहन मालवीय काशी नरेश से मिलने पहुंचे. काशी नरेश गंगा स्नान कर आए. मदन मोहन मालवीय से उनके आने का प्रायोजन पूछा. महामना ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्थापना की बात सामने रखी. काशी नरेश शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले इस काम से खुश हुए. राजा साहब ने महामना को वचन दिया कि सूर्यास्त से पहले काशी की जितनी ज़मीन पर पैदल घूम दोगे वो तुम्हारी हो जाएगी.
काशी नरेश का वचन सुनकर महामना निकल पड़े. अपने साथ आटा ले लिया. ताकि निशान बना सकें कि आखिर वो कहां-कहां पैदल चले. गोधूलि हुई. क्षितिज पर सूरज का रंग गाढ़ा लाल हो चला था. जो बता रहा था कि सूर्यास्त होने को है. मदन मोहन मालवीय फिर काशी नरेश के पास पहुंचे. दूसरे दिन ज़मीन दान में मिल गई. मापी गई तो मालूम हुआ कि 1300 एकड़ ज़मीन दान में मिली है. हालांकि अब प्रो. ध्रुव कुमार सिंह के शोध कार्य ने इन कहानियों की सच्चाई पर सवाल उठा दिया है.