हिंदी भाषा के मानकों को तय करने वाली ऐतिहासिक संस्था नागरीप्रचारिणी सभा, काशी पर बरसों से चला आ रहा पारिवारिक वर्चस्व अब टूट गया है। जिला प्रशासन वाराणसी द्वारा 9 जून 2022 को आयोजित हुए संस्था के चुनाव के परिणाम को लेकर हाल में आए इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन करते हुए आज यानी 6 अप्रैल 2023 को मतगणना जिला रायफ़ल क्लब के सभागार में संपन्न हुई। इस मतगणना के पश्चात इस ऐतिहासिक संस्था के सभापति पद पर प्रो. अनुराधा बनर्जी, प्रधानमंत्री पद व्योमेश शुक्ल विजयी निर्वाचित हुए।
चुनाव में संस्था के कुल सात पदाधिकारी और प्रबंध समिति के 11 सदस्य चुने गए। बीते करीब चार दशक के पारिवारिक वर्चस्व को तोड़ते हुए संस्था पर हिंदी के जाने-माने लेखक, कवि, रंगकर्मी/निर्देशक व्योमेश शुक्ल के अगुवाई वाला गुट विजयी हुआ। मतगणना की रिटर्निंग ऑफिसर एसडीएम पिंडरा अंशिका दीक्षित ने नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी निर्वाचन वर्ष 2022 की मतगणना में निर्वाचित पदाधिकारियों की सूची जारी की। जिसके अनुसार विभिन्न पदों पर निम्नलिखित लोग निर्वाचित हुए।
सभापति : अनुराधा बनर्जी, उपसभापति :1. सत्य नरायन पाण्डेय; 2. शिवदत्त द्विवेदी, प्रधानमंत्री : व्योमेश शुक्ल, साहित्य मंत्री : सोमदत्त द्विवेदी, अर्थ मंत्री : अनुराग उपाध्याय, प्रकाशन मंत्री : राधेश्याम दूबे, प्रचार मंत्री : आलोक शुक्ला. तो वहीं प्रबंध समिति में अविनाश तिवारी, आनन्द शंकर पाण्डेय, जितेन्द्र मोहन तिवारी, जे०पी० शर्मा, तन्मय तिवारी, धीरेन्द्र मोहन तिवारी, नरेन्द्र नीरव, प्रशान्त तिवारी, बीना सिंह, रजनीश उपाध्याय, विनय शंकर तिवारी चुने गए.
क्या था विवाद?
देश की आजादी के बाद से ही नागरीप्रचारिणी सभा पर एक परिवार का वर्चस्व रहा है. सन् 1969 में डीएवी इंटर कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य और कांग्रेस के पूर्व सांसद (चंदौली लोकसभा 1971-77, राज्यसभा 1980-86 ) सुधाकर पाण्डेय इसके प्रधानमंत्री बने. 2003 तक सुधाकर पांडेय ही इस पद पर रहे. उनके निधन के बाद बेटे डॉ. पद्माकर पांडेय ने इस पद को पारिवारिक गद्दी की तरह हथिया लिया. 2021 में डॉ. पद्माकर पांडेय का निधन हो गया. तो उनके छोटे भाई डॉ. कुसुमाकर पाण्डेय ने इस कड़ी को आगे बढ़ाया. हाल के दिनों तक डॉ. कुसुमाकर कागजों में इस संस्था के प्रधानमंत्री पद पर अपना दावा ठोंकते रहे.
नागरीप्रचारिणी सभा जैसी गौरवशाली संस्था का दुर्भाग्य है कि देश को आज़ादी मिलने के दो दशक बाद से ही यह संस्था धीरे-धीरे हिंदी पढ़ने-पढ़ाने वालों से कटकर एक परिवार की व्यक्तिगत जागीर बनती चली गई. सन् 1969 में डीएवी इंटर कॉलेज (वाराणसी) के पूर्व प्रधानाचार्य और कांग्रेस के पूर्व सांसद (चंदौली लोकसभा 1971-77, राज्यसभा 1980-86 ) सुधाकर पाण्डेय इसके प्रधानमंत्री बने और तबसे लेकर सन् 2003 तक वह इस पद पर आसीन रहे. उनकी मृत्यु के तत्पश्चात उनके बेटे डॉ. पद्माकर पाण्डे ने इस पद को पारिवारिक गद्दी की तरह हथिया लिया तथा सन् 2021 में अपनी मृत्यु तक वह भी इस पद पर आसीन रहे. उनकी इस पारिवारिक धारा को उनके जाने के बाद उनके छोटे भाई डॉ. कुसुमाकर पाण्डेय ने अक्षुण्ण रखा. वह हाल तक में कागजों पर इस संस्था के प्रधानमंत्री पद पर अपना दावा ठोंकते रहे.
हिन्दी भाषा के विकास में संस्था का योगदान:
नागरीप्रचारिणी सभा के प्रकाशन प्रकल्प का हिंदी भाषा की विकास यात्रा में महत्वपूर्ण साहित्यिक योगदान रहा है. सभा ने 12 खंडों में हिंदी विश्वकोश, 16 खंडों में हिंदी साहित्य का वृहद् इतिहास के अलावा 500 से ज्यादा ग्रंथ प्रकाशित किये हैं. सभा द्वारा शुरू की गई हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘सरस्वती’ से शायद ही हिंदी भाषा की जरा सी भी जानकारी रखने वाला शख्स परिचित ना हो. एक दौर में सभा द्वारा प्रकाशित शोध पत्रिका ‘नागरीप्रचारिणी पत्रिका’ का भी बड़ा मान रहा है. सभा द्वारा आज से एक शताब्दी पूर्व ही हिंदी के अकादमिक अध्ययन के लिए एम.ए. की कक्षाओं के लिए पहला पाठ्यक्रम बनाया गया था.
सभा ने कई क्षेत्रों के विद्वानों की मदद से लगभग पच्चीस वर्षों की मेहनत से हिंदी का पहला, वृहद, समावेशी और प्रमाणिक शब्दकोष ‘हिंदी शब्दसागर’ का प्रकाशन किया था. बारह खंडो में छपे इस शब्दसागर की महत्ता यह है कि इसकी भूमिका के तौर पर प्रकाशित आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ को आज भी हिंदी साहित्य के पिछले हज़ार वर्षों के इतिहास के सबसे प्रमाणिक आलोचना पुस्तक के तौर पर पढ़ा जाता है. अनेकों विश्वविद्यालयों के हिंदी पाठ्यक्रम का यह अभिन्न हिस्सा है.
नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री का संकल्प:
नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री व्योमेश शुक्ल ने बताया कि वह संस्था के पुनरुद्धार एवं सर्वांगीण विकास के लिए कृत संकल्पित हैं. उन्होने कहा कि उनके कुछ प्रमुख लक्ष्य हैं जिन्हें पूरा करने का वह प्रयास करेंगे.
- संसार में हिंदी के सबसे बड़े पुस्तकालय ‘आर्यभाषा पुस्तकालय’ का जीर्णोद्धार करना जो इस वर्ष अपनी स्थापना के शती वर्ष में है.
- साहित्यकारों-शोधार्थियों और हिंदी छात्रों के लिये संस्था के दरवाज़े खोलने का अभियान.
- पांडुलिपियों का डिजिटाइजेशन, जो सबको एक क्लिक पर मिल जाये.
- हेरिटेज इमारत का संरक्षण और आधुनिकीकरण.
- बड़े साहित्य उत्सव का आयोजन.
- ऑडिटोरियम और कॉन्फ्रेंस हॉल का निर्माण.
- गेस्ट हाउस एवं कैफेटेरिया का निर्माण.
- पुस्तक मेले का आयोजन.
- पाण्डुलिपियों का मेला.
- प्रकाशन प्रकल्प को पुन: शुरू करना.
- सभा को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की तरह विकसित करना.