ऋषभ चौरसियाः-
कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व करीब है, और पूरे देश में इसकी तैयारियां जोरों पर हैं। मथुरा, वृंदावन से लेकर हर छोटे-बड़े शहर तक, मंदिरों में भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है। इसी धार्मिक उमंग के बीच, लखनऊ में एक ऐसा मंदिर भी है जो न सिर्फ अपनी आध्यात्मिकता और खूबसूरती के लिए, बल्कि एक महिला की अदम्य इच्छाशक्ति और समर्पण के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है। यह मंदिर, जो लगभग 80 साल पुराना है, आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था और आशा का केंद्र बना हुआ है।
इतिहास और निर्माण की प्रेरणा
लखनऊ के इस अद्वितीय मंदिर की स्थापना जगन्नाथ प्रसाद साहू ने अपनी बहन राम प्यारी साहू की इच्छा के अनुरूप की थी। हरि ओम साहू, जो मंदिर के सेवक हैं, बताते हैं कि यह मंदिर राम प्यारी साहू के दृढ़ संकल्प का परिणाम है। उनकी इच्छाशक्ति इतनी प्रबल थी कि उन्होंने इस मंदिर को बनवाने का निर्णय लिया, और आज यह मंदिर लाखों भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।
लक्ष्मी नारायण की मूर्ति की विशेषता
मंदिर में स्थापित लक्ष्मी नारायण की मूर्ति लगभग 78 वर्ष पुरानी है। भक्तों का कहना है कि जब वे इस मूर्ति के सामने खड़े होते हैं, तो उन्हें एक अनोखी शांति और प्रसन्नता का अनुभव होता है, मानो मूर्ति उनसे संवाद कर रही हो। यह मंदिर न केवल ऐतिहासिक महत्व रखता है, बल्कि इसकी मान्यता भी बहुत गहरी है। यहां सच्चे दिल से आने वाले भक्तों की हर कामना पूरी होने की बात कही जाती है।
आकर्षक स्थापत्य कला
इस मंदिर की नक्काशी और स्थापत्य कला इसे एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में स्थापित करती है। मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर की गई बारीक नक्काशी कला प्रेमियों को आकर्षित करती है। यह मंदिर न सिर्फ भक्तों, बल्कि कला प्रेमियों के बीच भी विशेष स्थान रखता है।
दर्शन का समय और विशेषता
यह मंदिर सुबह 6:30 बजे से दोपहर 12 बजे तक और शाम 4 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है। कृष्ण जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर, जब पूरा देश भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव में मग्न है, यह मंदिर आस्था, कला और मानव इच्छाशक्ति का एक अद्वितीय प्रतीक बनकर सामने आता है।