महात्मा गांधी ने जब वाराणसी में एक विश्वविद्यालय की नींव रखी होगी तो क्या उनके दिमाग़ में कहीं भी ये ख़्याल आया होगा कि ये विश्वविद्यालय भविष्य में कभी प्राइवेट पार्क की तरह व्यवहार करेगा? क्या गांधी के मन में ये बात आई होगी कि जिस विश्वविद्यालय की स्थापना वो समाज बनाने के लक्ष्य के साथ कर रहे हैं, उसके अधिकारी कभी इसे कमाई का जरिया बना देंगे? गांधी दूरदर्शी थे. लेकिन इतनी नैतिकता के पतन को इस हद तक जाकर तो वो भी नहीं सोच पाए होंगे. महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से जारी एक नोटिस के गर्भ से ये सवाल पैदा हुए हैं.
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की ओर से एक नोटिस जारी किया गया है. नोटिस में वाराणसी शहर के नागरिकों के लिए एक जरूरी सूचना दी गई है. सूचना ये कि अगर सुबह और शाम काशी के वासी विश्वविद्यालय परिसर में टहलना चाहते हैं तो उन्हें फीस देनी होगी. यानी मॉर्निंग वॉक और इवनिंग वॉक के लिए शुल्क देना होगा. हर महीने 500 रुपए शुल्क तय किया गया है. नोटिस में लिखा है कि 250 रुपए जमा करके टहलने वाले नागरिक अपना आईडी कार्ड ले सकते हैं.
वॉक के लिए आईडी कार्ड:
विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से जारी इस नोटिस के मुताबिक़ कैंपस में टहलने के लिए एक आईडी कार्ड बनवानी होगी. जो विश्वविद्यालय के कुलानुशासक यानी चीफ प्रॉक्टर ऑफिस से जारी किया जाएगा. आईडी कार्ड के लिए चीफ प्रॉक्टर ऑफिस में आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र की फोटो कॉपी और टहलने वाले का एक फोटो जमा करना होगा. जिसके बाद चीफ प्रॉक्टर ऑफिस से एक आईडी कार्ड जारी किया जाएगा.

आईडी बनवाने के लिए विश्वविद्यालय ने चीफ प्रॉक्टर ऑफिस के प्रभारी हेमंत कुमार मिश्रा को जिम्मेदारी सौंपी है. नोटिस में उनका नंबर भी दिया गया है. 9839450677 पर कॉल या मैसेज कर हेमंत कुमार मिश्रा से संपर्क किया जा सकता है.
अपने इस फैसले में विश्वविद्यालय ने सीनियर सिटीजन के लिए मरव्वत भी की है. 60 साल की उम्र के लोगों को विश्वविद्यालय इस फीस में हर महीने छूट देगा. हालांकि ये छूट कितना होगा इसकी जानकारी नोटिस में नहीं दी गई है.
ये नोटिस क्यों ?
विश्वविद्यालय की चीफ प्रॉक्टर प्रो. अमिता सिंह की ओर से जारी इस नोटिस में बेहद साफगोई से लिखा हुआ है कि आख़िर ये फैसला क्यों लिया गया है. चीफ प्रॉक्टर की इस नोटिस के अनुसार ‘विश्वविद्यालय में मॉर्निंग वॉक और इवनिंग वॉक करने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक हो गई है. जिससे परिसर में मेले जैसा माहौल व्याप्त हो जा रहा है. परिसर की सुरक्षा व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए ये वॉक के लिए शुल्क लगाया जा रहा है.’
इस फैसले के सामने आने के बाद सवाल उठने शुरू हो चुके हैं. विश्वविद्यालय के छात्र नेता इसे प्राइवेटाइजेशन जैसा फैसला बता रहे हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन के इस फैसले की आलोचना हो रही है. सवाल है कि यदि यूनिवर्सिटी कैंपस की सुरक्षा ही मुद्दा है तो क्या बग़ैर किसी शुल्क के आईडी कार्ड नहीं बनाया जा सकता है? वॉक के लिए फीस लगाने का फैसला क्यों लिया गया? क्या यूनिवर्सिटी प्रशासन इस तर्क पर काम कर रहा है कि शुल्क लगा देने से कैंपस में सुबह-शाम टहलने वाले लोगों की संख्या कम हो जाएगी?
चीफ प्रॉक्टर प्रो. अमिता सिंह को बताना चाहिए कि आईडी कार्ड के लिए 500 रुपए तक का शुल्क क्यों वसूला जा रहा है? क्या कोई अन्य संस्थान इस तरह का फैसला पहले ले चुका है? जाहिर है कि यूनिवर्सिटी में एक खेल का मैदान है. यूनिवर्सिटी कैंपस में काफी जगह भी है. सुबह और शाम के वक़्त यूनिवर्सिटी में एक्टिविटी कम रहती है. जिसकी वजह से आसपास के लोग टहलने के लिए कैंपस में आ जाते हैं. लेकिन क्या आसपास के लोगों के टहलने से कैंपस में कोई ख़तरा पैदा हो रहा है? क्या कैंपस में टहलने आ रहे लोग कोई क्रिमिनल एक्टिविटी कर रहे हैं? क्या अब तक कोई ऐसी घटना प्रशासन की निगाह में आई है? अगर ऐसी कोई घटना नोटिस की गई है तो चीफ प्रॉक्टर को अपने आदेश में उसका जिक्र करना चाहिए था. ताकि उनके इस फरमान पर प्राइवेटाइजेशन वाला ठप्पा नहीं लगे.