Varanasi: “मैं राजपूत हूं, एक राजभर डोमिनेटेड क्षेत्र में रहती हूं. करीब 100 लोगों की भीड़ मुझपर और मेरी मां पर हमला करती है. हमारी मॉब लिंचिंग करने की कोशिश की जाती है. हमारे शेल्टर होम पर पत्थरबाजी हो जाती है. पुलिस के सामने मेरा कुर्ता फाड़ दिया गया. हम फटे हुए कपड़े में थाने गए. पुलिस 24 घंटे बाद तक मुकदमा दर्ज नहीं करती है.” ये कहते हुए सृष्टि कश्यप का गला रुंध जाता है और वो कुछ पल के लिए चुप हो जाती हैं.
सृष्टि कश्यप कांग्रेस की नेता हैं. पार्टी की प्रवक्ता रह चुकी हैं. दिल्ली में रहती हैं. लेकिन वाराणसी जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र हैं में एक NGO ‘साकाश’ चलाती हैं. जहां कुत्तों की देखभाल की जाती है. बच्चों की पढ़ाई-लिखाई भी करवाती हैं. गत बुधवार यानी 25 जनवरी को एक भीड़ अचानक पहड़िया स्थित उनके शेल्टर होम के पास इकट्ठा हो जाती है. भीड़ में बीजेपी के स्थानीय नेता शामिल थे. आस-पड़ोस के लोग भी थी.

बकौल सृष्टि कश्यप आसपास के कुछ लोग उनसे 20 लाख रुपए की रंगदारी मांग रहे थे. या फिर उनके NGO का नाम इस्तेमाल कर धन उगाही की बात कर रहे थे. लेकिन दोनों ही बातों को जब उन्होंने ठुकरा दिया तब उनके साथ बदसलूकी शुरू हो गई.
25 जनवरी को अचानक कुछ लोग सृष्टि कश्यप के शेल्टर होम के पास इकट्ठा होते हैं और पत्थरबाजी करते हैं. इसका विरोध करने सृष्टि और उनकी मां निकलती हैं. जिस पर उन्हें ये जगह छोड़ जाने के लिए कहा जाता है. ख़बर तक मीडिया से बातचीत में सृष्टि बताती हैं कि जिनके बच्चे कल तक हमारे पास निशुल्क पढ़ने आते थे उनके हाथों में पत्थर थे.
इन सब के बीच काले स्कॉर्पियो से बीजेपी के दो स्थानीय नेता राजेश मिश्रा और भूपेंद्र मिश्रा कुर्ता पहने हुए पहुंचते हैं. जगह खाली करने की बात करते हैं. आरोप है कि बीजेपी के नेताओं ने उन्हें ‘उठाकर फेंक देने’ तक की धमकी दी. सूचना मिलने पर पुलिस तो पहुंची. लेकिन वो भी सुरक्षा देने के बजाए उनके खिलाफ बात करने लगी. सृष्टि कहती हैं कि ‘जब हमने पुलिस वालों से उनके नाम पूछे तो जवाब मिला कि तू है कौन जो तूझे बताएं.’ उनका कहना है कि जो पुलिसकर्मी मौके पर पहुंचे थे उनकी वर्दी पर नाम नहीं लिखा हुआ था.
देखते ही देखते भीड़ 100 लोगों की हो जाती है और पुलिस वालों के सामने ही बीजेपी नेता और उनके समर्थकों ने सृष्टि पर हमला कर दिया. पुलिस के सामने सृष्टि का कुर्ता फाड़ दिया गया. बात में वो उसी हालत में थाने भी पहुंची थीं. पुलिस मूकदर्शक बनकर देखती रही. ये आरोप है.

सवाल है कि आखिर पुलिस के सामने जब हिंसा हो रही थी तो पुलिस चुप क्यों थी? पुलिस ने हमला करने वालों को रोका क्यों नहीं? क्या इसलिए कि लोगों को उकसाने वाले दो बीजेपी नेता थे? इस पूरे मामले में पुलिस की भूमिका संदिग्ध है. सृष्टि कश्यप घायल हालत में जब थाने पहुंचती हैं तो मुकदमा दर्ज नहीं किया जाता है. पूरे प्रकरण के 24 घंटे बाद सृष्टि की शिकायत दर्ज की जाती है. आखिर ऐसा क्यों?
सृष्टि कुछ गंभीर आरोप भी लगाती हैं. कहती हैं कि वो राजपूत हैं और पहड़िया का क्षेत्र राजभर डोमिनेटेड है. जो कि मूलतौर पर बीजेपी के सपोर्टर हैं. वो कहती हैं कि अगर मैं बीजेपी की नेता होती और कांग्रेस या सपा के कार्यकर्ताओं ने मारपीट की होती तो पूरी मशीनरी हमारे साथ खड़ी होती.
सवाल है कि जो काशी प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र हैं वहां कानून व्यवस्था का ये हाल क्यों है? सीएम योगी से लेकर पीएम मोदी तक उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था पर अपनी पीठ थपथपाते नहीं थकते. लेकिन एक महिला को लिंच करने की कोशिश होती है और पुलिस लगभग मूकदर्शक की हालत में क्यों दिखती है?