दुनिया भर में पैंडोरा पेपर लीक (Pandora Paper Leak) को लेकर बहस छिड़ी हुई है। इंटरनेशनल कंसोर्शियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव नामक खोजी पत्रकारों के एक संगठन ने पैंडोरा पेपर मामले के जरिए बड़ा खुलासा किया है। इसमें दुनिया भर के अमीर लोगों द्वारा टैक्स देने से बचने के लिए आजमाए जा रहे हथकंडों की पोल खोली गई है। टैक्स देने और काले धन को सफेद करने के लिए पहचान बदलकर चलाए जा रहे कंपनियों के मालिकों की जानकारी सामने आई है। इसमें क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) का नाम भी शुमार है।
पैंडोरा पेपर मामले में दुनिया के कुल पैंतीस देशों के उद्योगपतियों और सेलेब्रिटिज के नाम शामिल हैं। इसमें कई नाम भारत से भी हैं। अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस ने भारत के उन लोगों के बारे में पड़ताल की है जिनका नाम पैंडोरा पेपर से जुड़ा हुआ है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पैंडोरा पेपर मामले में भारत के 380 लोगों के नाम हैं। जिनमें अब तक 60 लोगों के बारे में पुख्ता सबूत मिल चुके हैं। या कहें कि 60 लोगों के नाम सत्यापित हो चुके हैं।
क्या है सचिन तेंदुलकर का माजरा:
क्रिकेट में सौ शतक लगाने वाले सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न से नवाजा जा चुका है। सचिन तेंदुलकर एक बार राज्यसभा के सांसद भी रह चुके हैं। पैंडोरा पेपर लीक में सचिन तेंदुलकर, उनकी पत्नी अंजली तेंदुलकर और ससुर आनंद मेहता का नाम सामने आया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सचिन तेंदुलकर, अंजली तेंदुलकर और आनंद मेहता के नाम से ब्रिटिश वर्जिन आइसलैंड में ‘सास इंटरनेशनल नाम की कंपनी थी।

सास इंटरनेशनल कंपनी में सचिन तेंदुलकर, अंजली तेंदुलकर और आनंद मेहता के नाम कुल 19 शेयर थे। तीनों कंपनी के निदेशक की भूमिका में थे। पैंडोरा पेपर में कंपनी और उससे जुड़े लोगों का पूरा ब्यौरा 2016 तक का है। क्योंकि 2016 में इस कंपनी को लिक्विडेट कर दिया गया था।
गौरतलब है कि पनामा पेपर मामले में भी इस कंपनी का नाम सामने आया था। जिसके ठीक तीन महीने बाद सास इंटरनेशनल कंपनी को लिक्विडेट किया गया था। सचिन तेंदुलकर के वकील ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर किया है।
क्या है खेल:
टैक्स देने से बचने और अपने निवेश को कानूनी एजेंसियों के हत्थे चढ़ने से बचाने के लिए एक तरीका आजमाया जाता है। टैक्स हेवेन देशों में यानी ऐसे देश जहां टैक्स नहीं देने पड़ते हैं, ऑफ द शेल्फ कंपनियां खरीदी जाती हैं। ऑफ द शेल्फ का सामान्य भाषा में अर्थ है ऐसी कंपनी जो काम नहीं करती है। ऐसी कंपनियां रेडीमेड की तरह होती हैं। यानी पहले से बनी-बनाई हुई।
टैक्स हेवेन देशों अपनी पहचान उजागर किए बगैर ही ये कंपनियां या ट्रस्ट शुरू किए जाते हैं। इस तरह टैक्स और कानूनी एजेंसियों से बचने की कोशिश की जाती है। यह तरीका काले धन को सफेद करने के लिए भी आजमाया जाता है।