प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका गए. अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के दिन उनकी एक तस्वीर सामने आई. जिसमें प्रधानमंत्री योग करने से पहले बापू की प्रतिमा के सामने सिर झुकाए प्रणाम की मुद्रा में दिख रहे हैं. लेकिन इसमें नया तो कुछ है नहीं. प्रधानमंत्री विदेश जाते हैं तो बात गांधी की ही करते हैं, करनी पड़ती है. झुकते गांधी के सामने ही हैं, झुकना पड़ता है. लेकिन जब सात समंदर लांघ कर अमेरिका में ये करतब प्रधानमंत्री दिखा रहे थे उसी वक़्त एक प्रैक्टिस उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी में किया जा रहा था. गांधी की प्रेरणा, गांधी के विचारों की नींव पर स्थापित सर्व सेवा संघ के प्रकाशन कार्यालय को ध्वस्त किए जाने की नोटिस चस्पा की जा रही थी. एक तरफ गांधी को प्रणाम करते नरेंद्र मोदी, दूसरी ओर उनके संसदीय क्षेत्र में गांधी विचारों वाले संस्थान के दफ़्तर को बुलडोज किए जाने की नोटिस. ओह!

सर्व सेवा संघ के खिलाफ कार्रवाई के आदेश के बाद ट्विटर पर कुछ ट्वीट देखे. बनारस में गांधी विचारों के लोगों ने इसका विरोध किया. प्रोटेस्ट भी किया. उसकी तस्वीरें दिखीं. तो सर्व सेवा संघ को जानने की इच्छा हुई. क्योंकि ये न्यू इंडिया है. जहां ज्यादातर चीज़ें मैसेजिंग के लिए होती हैं. मैसेज तह में छिपा होता है. तो लगा कि बुनियाद समझी जानी चाहिए. सो चला गया सर्व सेवा संघ की वेबसाइट पर. देखें कि आख़िर संस्था के क्या उद्देश्य हैं, क्या काम है?
पहली नज़र गई इस बात पर- “सर्व सेवा संघ का उद्देश्य ऐसे समाज की स्थापना करना है, जिसका आधार सत्य और अहिंसा हो, जहाँ कोई किसी का शोषण न करे और जो शासन की अपेक्षा न रखता हो. यह शान्ति, प्रेम, मैत्री और करुणा की भावनाओं को जाग्रत करते हुए साम्ययोगी अहिंसक क्रांति के लिए स्वतंत्र जनशक्ति का निर्माण तथा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक साधनों का उपयोग करना चाहता है.”
सत्य और अहिंसा के आधार पर समाज की स्थापना. जिस मुल्क की सरकार का प्रधान देश के पुरखों और आज़ादी के इतिहास के बारे में झूठ बोलता हो, जो कई मौकों पर ग़लत तथ्य पेश करते हुए पाया गया हो. जिस देश में आए दिन हिंसा हो रही हो. जिसके एक राज्य (मणिपुर) में दो महीनों से हिंसा जारी हो. जहां सरकार में बैठे मंत्री या सत्ता संरक्षित नेता और अन्य लोग धर्म के नाम पर कट्टरता फैलाते हों, हिंसा का आह्वान करते हों. वहां एक संस्था सत्य और अहिंसा की बुनियाद पर टिका रहे ये कैसे बर्दाश्त किया जाए?
फिर सर्व सेवा संघ ऐसा समाज बनाने के लिए काम कर रहा है जहां कोई किसी का शोषण न करे और शासन की अपेक्षा ना रखता हो. शान्ति, प्रेम, मैत्री और करुणा की भावनाओं को जाग्रत करते हुए साम्ययोगी अहिंसक क्रांति के लिए स्वतंत्र जनशक्ति का निर्माण तथा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक साधनों का उपयोग करना चाहता हो. न्यू इंडिया जिस राह पर 2014 के बाद निकल पड़ा है उसकी बुनियाद में कतई ये तत्व नहीं हैं. वैज्ञानिकता से हम बहुत दूर हो जाना चाहते हैं. आध्यात्मिकता को तज कर छिछले ख़तरनाक धार्मिक कट्टरपन इसके लिए खाद-पानी है.

समाज में जाति, वर्ण, लिंग आदि तत्वों के आधार पर ऊँच-नीच का भेदभाव निर्मूल हो, वर्ग-संघर्ष के स्थान पर वर्ग-निराकरण हो. ये उद्देश्य है सर्व सेवा संघ का. कितनी ही ख़बरें हम देखते हैं जातिगत भेदभाव को लेकर. मसलन गुजरात में एक युवक शादी करने जा रहा था उसे घोड़ी से नीचे उतार दिया गया क्योंकि वो दलित जाति से आता है. ये बस एक उदाहरण है. देश में 80 करोड़ लोग इस स्थिति में हैं कि उन्हें 5 किलो मुफ्त अनाज दिया रहा है. वैसे तो सरकार इसे अपनी उपलब्धि के तौर पर गिनाती है. लेकिन इसका दूसरा पहलू तो कुछ और ही है. जिस देश के 2-3 पूंजिपति दुनिया भर के अमीरों की लिस्ट में शुमार हों, उसी देश में 80 करोड़ लोग ग़रीबी की मार झेल रहे हैं तो वर्ग का अंतर तो दिख ही रहा है. हालांकि वर्ग संघर्ष खुलकर शुरू नहीं हुआ है, लेकिन संघर्ष तो है ही.
थोड़ा ठहर कर ये भी जान लीजिए कि सर्व सेवा संघ की स्थापना 1948 में हुई. गांधी की हत्या के बाद अप्रैल, 1948 में सेवाग्राम में देश के सभी गांधी-विचार प्रेमियों तथा रचनात्मक कार्यकर्ताओं का सम्मेलन हुआ. गहरे विचार मंथन के बाद सर्व सेवा संघ और सर्वोदय समाज की स्थापना हुई. 1952 में आचार्य विनोबा भावे की भूदान यात्रा जब उत्तर प्रदेश-बिहार में चल रही थी तभी वर्धा में यह सोचा गया कि गांवों में सर्वोदय विचार पहुंचाना है तो अपना प्रकाशन जरूरी है. इस प्रकार सर्व सेवा संघ प्रकाशन की शुरुआत हुई. जिसका कार्यालय वाराणसी में स्थापित किया गया. प्रकाशन महात्मा गांधी, विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण जैसे महापुरुषों के विचार किताब की शक्ल में प्रकाशित करता है.
इन सब बातों से इतर ये जान लेना भी जरूरी है कि विवाद क्यों है और क्या है? वाराणसी को क्योटो बनाने का जो यज्ञ 2014 में शुरू हुआ था वो जारी है. ये मानव इतिहास का सबसे लंबे समय तक चलने वाला अनुष्ठान है, शायद. तो इसी में एक हवन सर्व सेवा संघ के रूप में दिया जा रहा है. राजघाट एक जगह है काशी में. गंगा नदी के किनारे. वहीं सर्व सेवा संघ का प्रकाशन कार्यालय है. प्रमुख कार्यालय महाराष्ट्र के वर्धा में है. राजघाट स्थित प्रकाशन कार्यालय की ज़मीन पर प्रशासन की नज़र है. बनारस की संस्कृति को तबाह कर देने के अनुष्ठान में ये दफ़्तर छोटा सा पत्थर बन रहा है राजघाट के पास. तो इसकी ज़मीन को हथियाने की कोशिश है. अवैध काम को वैधता की शक्ल में करना सरकार बहादुर का शगल तो है ही.
8 एकड़ से कुछ ज्यादा पर बने सर्व सेवा संघ के परिसर की यह ज़मीन 1960 में खरीदी गई थी रेलवे से. जिसके कागजात हैं भी. मीडिया रपटों के मुताबिक 2020 में रेलवे ने परिसर के एक हिस्से का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. यह कहते हुए कि इसके लिए मुआवजा दिया जाएगा. और यहां से हथियाने का जो अभियान शुरू हुआ वो कार्यालय को ध्वस्त कर देने तक आ पहुंचा है. रेलवे ने बाकायदा एक नोटिस जारी किया. 27 जून, 2023 को जारी नोटिस में कहा गया कि 30 जून, 2023 को काशी रेलवे स्टेशन के उत्तरी छोर में, जी.टी. रोड से सटे, उत्तर रेलवे के भूमि में, सर्व सेवा संघ द्वारा निर्मित अवैध निर्माण के ध्वस्तीकरण की कार्यवाही रेल प्रशासन द्वारा की जाएगी. अत: आप सभी अतिक्रमणकर्त्ताओं को सूचित किया जाता है कि तत्काल रेल भूमि खाली करें. आज्ञा से उत्तर रेलवे प्रशासन.
हैरत में डाल देने वाली बात ये कि जिस उत्तर रेलवे ने पैसे लेकर 1960 में ये ज़मीन सर्व सेवा संघ को बेची, वही उत्तर रेलवे उस ज़मीन को हड़पने की कोशिश कर रहा है. लेकिन क्या कोशिश उत्तर रेलवे की है? या सरकार के इशारे पर किया जा रहा प्रयास है? अगर खेल मैसेजिंग का ही है तो फिर गांधी विचारों की नींव पर खड़े संस्थान के प्रकाशन को तोड़ देने से बड़ा मैसेज क्या ही हो सकता है? जिस देस में सत्ताधारी पार्टी की एक सांसद गांधी के हत्यारे को देशभक्त बताती हो, सत्ताधारी विचार परिवार से जुड़े एक संगठन की नेता गांधी की तस्वीर लगाकर गोली चलाने का नाटक पेश करती हो उस देश में खुले तौर पर गांधी विचार को प्रसारित करने वाले संस्थान पर हमला करने से बड़ा मैसेज तो कुछ हो नहीं सकता.
मेन स्ट्रीम मीडिया ऐसे मुद्दों से बहुत आगे जा चुकी है. तो कोई उम्मीद नहीं उनसे. लेकिन बनारस का नागरिक समाज जिसे इस कार्रवाई से फर्क पड़ता है, जो गांधी के मूल्यों को बचाने की लड़ाई के पक्ष में खड़ा है वो डटा हुआ है. तभी तो ट्विटर के ट्रेंड से लेकर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के सिंह द्वार पर प्रोटेस्ट तक किया जा रहा है. इस पूरी बातचीत को समेटने का कोई छोर नहीं है. ये एक विमर्श है, चर्चा है जिस पर खूब बातचीत हो सकती है. इस कार्रवाई के कई तह हैं. जिन्हें परत-दर-परत खोला जा सकता है. लेकिन जो हो रहा है वो ख़तरनाक है. कायराना है. जो संस्थान हमारे मुल्क के पुरखे बना गए, बसा गए उन पर हमले की जितनी निंदा की जाए उतना कम है. एक तरफ गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार और दूसरी ओर गांधी विचारों का प्रचार-प्रसार करने वाले सर्व सेवा संघ पर बुलडोजर चलाने की कोशिश बहुत कुछ कहती है.
फेसबुक पर ये पोस्ट आकाश कुमार नाम के यूजर ने लिखी है.