गांवों में ज़मीनें लोगों की सबसे बड़ी पूंजी होती हैं. कार-गाड़ी घाटे का सौदा है. लोग कोशिश करते हैं अगर ख़रीद न सकें तो जो पहले का है उसे बरकरार रख सकें. लेकिन बरकरार कौन रखने देता है. राजनीति और प्रशासन की हीलाहवाली से कुछ और ही चल रहा है.
मामला मुख्यमंत्री के शहर गोरखपुर का है. गांव बेलघाट खुर्द है. पीपीगंज थाने के अंतर्गत आता है. एक ज़मीन बुजुर्ग ने बेची. परती की ज़मीन थी (अगर आप गांव में रहे हैं तो समझते होंगे ) ख़रीदने वालों ने ख़रीदी. लेकिन उसके क़रीब 25 साल बाद जब खरीदनेवालों ने उस पर निर्माण करना चाहा तो उस जमीन के कई दावेदार निकल आए. उन्होंने बल से कहें या ताक़त कहें जैसे भी निर्माण करा दिया. अब सन्तोष इतने पर भी नहीं. अब और ज़मीन कब्ज़े की ओर देख रहे हैं.
पूरी कहानी कुछ यूं है. शिवमूरत सिंह इस विवादित जमीन के मालिक थे जिन्होंने ये ज़मीन रघुनंदन तिवारी को बेची थी. ये साल 1997 की बात है. तत्कालीन ग्रामप्रधान की उपस्थिति में ये लिखा पढ़ी हुई थी. लेकिन अब जब ज़मीन पर निर्माण की स्थिति बनी तो दावेदार कई निकल आए.
बेलघाट खुर्द में एक मंदिर का इस जमीन पर दावा आया. उनका कहना है कि ये ज़मीन उन्होंने शिवमूरत सिंह की बेटियों से अपने नाम करा ली और ये कह कर निर्माण शुरू हो गया.
सच और झूठ तो अभी दूर की बात है. ये भी हो सकता है कि इन दोनों दावों में से एक ही सही हो. हो सकता है कि दोनों सही हों. लेकिन एक ही ज़मीन दो बार कैसे बेची जा सकती है. मंदिर के लोग कह रहे हैं कि आपसी सहमति से ये निर्माण कराया गया है. लेकिन दूसरा पक्ष के रहा है कि गुंडागर्दी के दम ये हुआ है.
हमने हल क्या है ये समझने को पुलिस चौकी की कार्रवाई भी देखी. पुलिस चौकी के लोग समझौते के पक्षधर तो हैं लेकिन मोरल पुलिसिंग के दम पर. वो दोनों पक्षों को अदालती कार्रवाई के नुक़सान बता रहे हैं. लेकिन जाहिर है वो ये तय करने में सक्षम नहीं कि दावा किसका सही है. उनका अधिकार भी नहीं.
रघुनंदन तिवारी के घर के लोगों का दावा है कि बड़ी संख्या में लोग धमक आते हैं मार-पीट की धमकी देते हैं.इस तरह से निर्माण हो रहा है. इनके घर मे एक सदस्य आर्मी में हैं. उनसे बातचीत पर उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. उनका कहना है देश के लिए सेवा देने के बावजूद हमारे घर के लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है.
गांव के अन्य लोगों के भी आरोप हैं कि मंदिर के नाम पर इन्होंने सामने ग्राम पंचायत की ज़मीन कब्ज़ा की हुई है. चूंकि बड़े संख्या में ये होते हैं इसलिए कोई बोल नहीं पाता.
इस ज़मीन विवाद का सच क्या है ये तो अभी दूर की कौड़ी है लेकिन इतना तय है कि अगर इसे जल्दी निपटारा नहीं मिला तो विवाद बढ़ेगा. हम कैम्पियरगंज के सीओ और पीपीगंज के एसओ से भी इस प्रकरण पर बात करने की कोशिश कर रहे हैं. जैसे ही कोई रिस्पॉन्स आएगा हम आप तक लाएंगे.