महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्विद्यालय नाम तो सुना ही होगा जी हाँ, वही जो बनारस के कैंट से सटे इंग्लिशियालाईन और मलदहिया के बीच में बसा हुआ है. स्वाधीनता की लड़ाई में स्वदेशी आंदोलन में खड़ा हुआ यह संस्थान आज आधुनिक होने के गुमान में गुमनाम हुए जा रहा है. अब थोड़ी सी सीरियस और ताजा घटनाक्रम पर बात कर लेते हैं. देखिए कहने को तो विद्यापीठ महापुरुषों की कार्यशाला रही, स्वाधीनता की प्रयोगशाला रहीं व आजादी के मतवालो की पाठशाला भी रही लेकिन अभी यही विश्विद्यालय NAAC नाम की संस्था से उपजी एक ग्रेडिंग सिस्टम की भयंकर बीमारी से पीड़ित है. न जाने यह बिमारी अबतक सूबे और देश के कितने कॉलेज, विश्वविद्यालयों को अपने आगोश में ले चुकी है. फ़िलहाल यह लाईलाज बीमारी महामारी का रुप ले रही है. मैकाले की शिक्षा व्यवस्था को पानी पी पीकर दिन-रात कोसने वाले बहरूपिये विद्वान इसी बीमारी के जनक हैं.
विद्यापीठ में NAAC का जलवा
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में तीन दिनों के लिए नैक टीम सर्वे के लिए आ रही है. इसके लिए 2 महीने पहले से ही तैयारी शुरू कर दी गयी थी. अक्टूबर महीने की 07, 08, व 09 को NAAC की टीम विश्विद्यालय का दौरा करेगी. इसमें संस्थान की बुनियादी संरचनाओं, शिक्षा की गुणवत्ता, छात्रों व शिक्षकों के लिए जरूरी सुविधाओं का मूल्यांकन, कैंपस की साफ-सफाई एवं पढ़ाई-लिखाई के माहौल के आधार पर कुछ अंक दिए जायेंगे जिससे विश्विद्यालय की साख कितनी है ये मालूम होगी इसे ग्रेडिंग सिस्टम भी कहा जाता है.
अब विश्विद्यालय के प्रशानिक अमले की पूरी कोशिश है कि इस बार ग्रेड A++ हो जाये इसके लिए महीनों से चल रही तैयारी और जुगाड़ सिस्टम से एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया गया है. बस सबकी सांसे NAAC टीम के दौरे पर अटकी हैं.
दुल्हन की तरह सजा कैंपस
विद्यापीठ परिसर को NAAC टीम के लिए आकर्षक बनाने के क्रम में रंगबिरंगी इलेक्ट्रिक लाइट्स से सजा दिया गया है मानो पूरा परिसर किसी बड़े उत्सव में मगन हो. आनन-फानन में सड़कें भी चमक उठी हैं, कई इमारतों में चुना-पेंट भी कराया गया है ताकि बाहर से देखने वालों को सब कुछ चंगा-सी लगे. फिलहाल पूरा कैंपस इसी बहाने रंग-रोगन होकर खुशनुमा लग रहा है.
कुलपति की अपील महायज्ञ में दें अपनी-अपनी आहुति
अरे घबराईये नहीं, अपनी-अपनी आहुति का शाब्दिक अर्थ न समझ बैठिएगा इसका मतलब है कि सबको सहयोग करने की अपील की गयी है खासकर छात्रों से.
जो अकसर किसी बाहरी को देख कर जरा सा पूछने पर सारा पोल खोल देते हैं. पिछली बार यही तो हुआ था NAAC की टीम ने जब कुछ छात्रों से बातचीत की तो कागज पर लिखी विकास की इमारत भड़भड़ा कर गिर गयी और नतीजा C ग्रेड के रूप में मिला.
क्या है NAAC नाम की बला
इस भौकाली संस्था का नाम नेशनल असेस्मेंट एंड एकेरडिटेशन काउंसिल (NAAC) है ये एक ऑटोनॉमस बॉडी है जो हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूशन्स को तय मापदंडों के आधार पर उनके प्रदर्शन का आकलन करने के बाद मान्यता देती है. काउंसिल की स्थापना 1994 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा की गई थी. भारत में कॉलेज, या विश्विद्यालय चलाने के लिए NAAC की मान्यता जरूरी है. विशेष रूप से, स्टेट यूनिवर्सिटीज को NAAC से मान्यता प्राप्त नहीं होने पर UGC से अनुदान और वित्तीय सहायता नहीं मिलती है. सारा खेल इसी अनुदान और फंड का है बाकी सब मोह-माया है.
NAAC को इसलिए बनाया और ये है काम
- NAAC एक स्वायत्त संस्था है. जिससे इसके राजनीतिक प्रभाव को कम किया जा सके.
- NAAC का मकसद, उच्च शिक्षा संस्थानों के कामकाज में क्वालिटी अश्योरेंस को महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना है.
- NAAC, देश के कई संस्थानों में सहकर्मी टीम दौरों के अलावा सेमिनार और कार्यशालाएं भी आयोजित करता है.
- NAAC, राज्य सरकारों और पेशेवर संस्थान के साथ भी साझेदारी करता है.
- NAAC ग्रेडिंग 4 साल के लिए मान्य होती है. इसके बाद, फिर से रेटिंग दी जाती है.
- NAAC मान्यता पाने के लिए, संस्थान को सभी मानकों को पूरा करना होता है.
- NAAC मान्यता पाने के लिए, संस्थान को व्यापक शोध करना होता है और सर्वोत्तम टेक्नोलॉजी को अपनाना होता है.
ये है NAAC टीम जो पधार रही विद्यापीठ
इस बार NAAC के चेयरमैन प्रो. राधे श्याम शर्मा, कोआर्डिनेटर डॉ. लाल नंदांगा, प्रो. जय प्रकाश त्रिवेदी, प्रो. राम कृष्णा सीलम, प्रो. सीमा मलिक, प्रो. बिजयसिंह मिपुन और प्रो. एमएस देशमुख काशी विद्यापीठ का भविष्य तय करने वाले हैं.
वहीं विश्विद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष संदीप यादव ने कहा कि पिछले कई वर्षो से संस्थान को C ग्रेड में रखा गया है जिससे काफी नुकसान भी हुआ. बेहतर पढ़ाई-लिखाई के लिए उच्च गुणवत्ता की सुविधाएं मिलनी ही चाहिए. इसके लिए पूरे कैंपस के छात्र- छात्राएं सहयोग कर रहे हैं. उम्मीद है कि इस बार विश्विद्यालय प्रशासन ने जितनी तैयारी की है उससे A++की श्रेणी में रखा जाये. यदि ऐसा हो गया तो एक बार फिर शिक्षा का बेहतर माहौल तैयार किया जा सकता है.
लेकिन जरा रुकिए, अब विद्यापीठ की सच्चाई से आप थोड़ा बहुत तो वाकिफ होंगे ही नहीं हैं तो जान लीजिए वही विद्यार्थी यहां प्रवेश लेना चाहता है जिसकी रुचि पढ़ने लिखने में कम ही रहती है ऐसा आपको हर दूसरा शख्स कहता मिल जाएगा. बाकी नेतागिरी से थोड़ा-बहुत काम चलता था अब वो भी दुकान बंद कर दी गयी है हालांकि इससे आहत तबका पुरजोर विरोध कर रहा है नई रणनीति बन रही है पर आदेश ऊपर से है इसीलिए कुछ फर्क नहीं पड़ रहा. कैंपस में ही ज्यादातर लोगों का मानना है कि यहां की छात्र राजनीति दम तोड़ रही है कारण छात्रों से तालमेल न होना, पूंजीवाद व विचारधारा कि घोर कमी उस पर भी छात्र नेताओं का अध्ययन से मोहभंग होना. यहां के अधिकतर छात्र नेताओं के पास कक्षा से अनुपस्थित होने का लम्बा अनुभव है. इसलिए यहां के शिक्षा की गुणवत्ता बेहद खराब स्थिति में पहुंच चुकी है. अब तो कई लोग यह भी कहते पाए जाते हैं कि अपने किसी खास को कम से कम यहां पढ़ने के लिए तो नहीं ही कहेंगे. सोच लीजिए,हम 100 साल बाद किसी संस्थान को किस गर्व के साथ ढो रहे है जी हां! ढो ही रहे हैं. बुरा लगा हो तो इसका मतलब ये कि अभी भी आपको इस संस्थान से प्रेम है.