सियाचिन में शहीद हुए कैप्टन अंशुमान सिंह की वीरगाथा और उनके परिवार की पीड़ा आजकल चर्चा का विषय बनी हुई है। देश की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर करने वाले कैप्टन अंशुमान सिंह को मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनकी पत्नी स्मृति सैनी और मां मंजू सिंह ने राष्ट्रपति से प्राप्त किया। लेकिन इसके बाद से ही अंशुमान के माता-पिता, पूर्व सैनिक रवि प्रताप सिंह और उनकी पत्नी मंजू सिंह, एक नई तरह की चुनौती का सामना कर रहे हैं।रवि प्रताप सिंह का आरोप है कि उनके बेटे की शहादत के बाद उनकी बहू स्मृति सैनी अपने मायके दीनानगर, गुरदासपुर (पंजाब) चली गई और परिवार से नाता तोड़ लिया। साथ ही, बेटे की आखिरी निशानी ‘कीर्ति चक्र’ भी अपने साथ ले गई। रवि प्रताप सिंह ने सरकार से अनुरोध किया है कि उन्हें कीर्ति चक्र की एक प्रतिकृति (रेप्लिका) मुहैया कराई जाए, ताकि वे अपने बेटे के शौर्य को याद रख सकें।कैप्टन अंशुमान सिंह 19 जुलाई 2023 को सियाचिन में एक भीषण अग्निकांड के दौरान अपने साथियों, दवाएं, और चिकित्सा उपकरणों को बचाते हुए शहीद हो गए थे। इस महान बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। हालांकि, अंशुमान की शहादत के बाद उनके परिवार में दरार आ गई। लखनऊ में अपने आवास पर मीडिया से बातचीत के दौरान रवि प्रताप सिंह ने बताया कि चार अगस्त 2023 को अंशुमान की तेरहवीं थी और अगले ही दिन उनकी बहू स्मृति सैनी घर से सामान लेकर चली गई और परिवार से संपर्क खत्म कर दिया। रवि प्रताप सिंह ने कहा कि यदि बहू कहती, तो वे उसे बेटी की तरह समझकर उसकी शादी करवा देते।रवि प्रताप सिंह का मानना है कि सरकार को ‘शहीद के निकटतम परिजन'(नेक्स्ट टू किन) की परिभाषा बदलनी चाहिए। जब कोई युवा सेना में भर्ती होता है, तो उसके माता-पिता का नाम निकटतम परिजन के रूप में दर्ज होता है। शादी के बाद यह नाम पत्नी का हो जाता है। शहीद होने की स्थिति में सेना की ओर से मिलने वाली आर्थिक मदद और अन्य तमाम सुविधाएं पत्नी को ही मिलती हैं। रवि प्रताप सिंह ने यह सुझाव दिया कि इस प्रक्रिया में बदलाव किया जाना चाहिए ताकि माता-पिता को भी शहीद के सम्मान और सुविधाओं का हिस्सा मिल सके।
शहीद कैप्टन उनकी पत्नी व पिता